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गुणठाणाअधिकार,
आकरो छे तेणे समाकितमां अतिचार लागे छे तेहने क्षयोपशम समकित कहीइं, एहनी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त छे उत्कृष्टि ६६ साछठिसागरोपम केतलाएक मनुष्यभव अधिक एतली स्थिति रहे ए समकितने पांच अतिचार लागे तेहनां नाम ॥ संका जे आगममां कह्यो ते साचो पिण कांईक संदेह उपजे १, अतिचार ॥ कंखा बीजा मतना शास्त्र तथा देव हरिहरादिक सरागि तथा ते मत गुरुसविकारे तेहने काईक रुडापणे जाणि वांछा करिए २ अतिचार, वितिगछाजे धर्मअरिहंतनो कह्यो करीइं पण एहनो फल थासे के नही थाय अथवा जिन सासनथी बीजा काईक बीजा मतनी करणी रुडी छे एहवो परिणाम आवे ते त्रीजो ३ अतिचार पसंस जे परमतनी परसंसा करे जे बीजा मतना देव तथा लिंगीयाता कष्टकरणी तथा कोई चमत्कार देखीने ते उपरे राग आवे तेहने पगे लागे तेहना गुण बोले ए चोथो ४ अतिचार जाणवो ॥ संथवो जे बीजा मतना देव तथा गुरु तथा ते मतना जे सेवक तेहनो परिचय मेलाप घणो करे बीजा मतनी वात करे सांभले पांचमो आतिचार ॥ ए क्षयोपशम समकित एक जीवने असंख्यातीवार आवे अने वली असंख्यातीवारजाए, जे आगमने आधारे राखे तेहने रहे तेपछे क्षायिक समकित थाई ते क्षायिकनो अर्थ लिखीइं छे. अनंतानुबंधी च्यार ४ मिथ्यात्व मोहनी १ मिश्रमोहनी २ समकितमोहनी ३ ए सात प्रकृति सर्वथा जे जीव खपावीने निरमलीपरतीतकिधी ते क्षायिकसमकिती कहीइं. ए आव्या पछे जाय नहीं. ए समकितवाला जीवने दस जातिनी रुचि उपजे ते लिखीइं छे. निसर्गरुचि नव तत्व ९ छे द्रव्य तेहना ४ निक्षेपा सातनय पोतानी बुद्धियी
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