________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कर्मग्रन्थस्य टबार्थः
१, उपसम भावनुं समकीत जे सात प्रकृति उपसमावे अने २, उपशम चारित्र जे पूर्वे मोहनीय कर्मनी प्रकृति उपसमावी छे ते. ॥६॥ बीए केवल जुअलं, सम्मं दाणाइ लद्वि पण चरणं। तइए सेसुवओगा, पण लद्वि सम्म विरइ दुगं ॥६॥ ___अर्थ-बीजा क्षायिक भावना नव ९ भेद छे ते कहे
छे. तिहां केवल ज्ञान १; केवल दर्शन २, क्षायिक समकित १, दानादिक पांच लब्धि-क्षायिकदान १, क्षायिकलाभ २, क्षायिकभोग ३, क्षायिकउपभोग ४, क्षायिकवीरज ५, ए पांच अने क्षायिकचारित्र १ ए नव ९ भेद क्षायिकना जाणवा. बीजा क्षयोपशमभावना १८ अढार भेद छे ते कहे छे. जे च्यार ४ ज्ञान, मतिज्ञान १, श्रुतज्ञान २, अवधिज्ञान ३, मनःपर्यायज्ञान ४, तीन अज्ञान-मतिअज्ञान ५, श्रुतअज्ञान ६, विभंगज्ञान ७, तीन दर्शन-चक्षुदर्शन ८, अचक्षुदर्शन ९, अवधिदर्शन १० ए दश क्षायोपशमिक उपयोग कहीजे. पांच क्षयोपशमिक लब्धि क्षयोपशमिक दान ११, लाभ, १२, भोग १३, उपभोग १४, वीरज १५, क्षयोपशमनु समकीत १६, देशविरति १७, सर्वविरति १८ ए अढारे क्षयोपशमभावना भेदजांणवा.॥६८॥
अन्नाण मसिद्धत्ता, संजम लेसा कसाय गई वेआ। मिच्छं तुरिए भवा, भवत्त जिअत्तपरिणामे ॥६९॥ ___ अर्थ-चोथा उदयिक भावना २१ भेद छे कहे छे. अज्ञान १, असिद्ध संसारी २, असंजमी अविरति ३, छ स्या, ४ कषाय च्यार, १३. गति च्यार. १७ वेद त्रण, २० 85
For Private And Personal Use Only