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विचार रत्नसार. २ आकास्तिकायना-अरूपी, अचेतन, अक्रिय, अने
अवकाशदानवंत. ४ पुद्गलास्तिकायना-रूपी, अचेतन, सक्रिय, अने
पूरणगलण. ५ कालना-अरूपी, अचेतन, अक्रिय, अने वर्तना.
६ जीवना-अरूपी, चेतन, सक्रिय, चेतनालक्षणवंत. १६८ प्र.-पर्यायास्तिकनयना छ भेद कहो, तथा तेनुं किंचित्
विशेषकथन गुणपर्यायस्वरूप कहो. उ०-१ पर्यायत्वं, २ भव्यत्वं, ३ सिद्धत्वं, ४ अभव्यत्वं,
५ कारणत्वं, ६ कार्यत्वं. वळी प्रकारांतरे गुणपर्याय स्वरूप कहे छे:--
द्रव्यव्यंजनपर्याय असंख्यप्रदेशत्वं, गुणपर्याय गुणांतरभेद क्षात्यादिभेद, गुणव्यंजनपर्याय, एक गुणना अनंतपर्याय, स्वभाव पर्याय, ते षट्गुणहानि वृधिरूप, अने विभावपर्याय ते नर नरकादिपर्यायास्तिक सामान्य पारिणामिक, अखंड, अलख, असहायी, सक्रियना अनंतगुणपर्याय समुदायनो
बादर द्रव्यभेद कहीए. १६९ प्र०-द्रव्य अभेदी ते शुं ?
उ०-द्रव्यना बे भाग न थाय माटे. १७० प्र०-भेद द्रव्य ते केम ? उ०-गुण गुणना करनार जुजुवा भणी भेदस्वरूपी कहीए.
जेम केः-ज्ञान गुण, दर्शन गुण, चारित्र गुण, सुख
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