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श्रीदेवचन्द्रजीकृत छटक प्रश्नोत्तर.
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दीसतो नयी. तथा कोइ पूछस्येजे औदारिकशरीर छतो देशादेतो दीसे छे ते एहनो आशय छे, जे आहारकनो अंत मुहूर्त नान्हो जणाय छे ते लोकने खबर पडे नहीं. तथा जो ए शरीर मध्ये आत्मप्रदेश छे तेपण तैजसकार्मणशरीरी छे, पण औदारिकावगाही नयी अने जो ए शरीरे आत्मप्रदेश सर्वथा न मानीए तो आहारकशरीरनो संकेलो संभवे नहीं. तथा तिहां उत्तर सांभलतांज आहारक टली जाय छे अने आत्मप्रदेशो औदारिकशरीरमध्ये समाय छे तथा कोइक पूछस्ये जे मूलगे शरीरथी जास्ये. आहारक जाइ तां सीम आत्मप्रदेशनी श्रेणि छे ते तैजसकार्मणवंत छे, जे सभी अवगाहनापन्नवणा सूत्रे पांचराजनी कही छे कार्मणनी अवगाहना १४ राजनी कही छे उत्कृष्टथी जघन्य अंगुलने असंख्यात भे भागे कही छे, अने आहारक करतां शरीरादि पर्याप्ति नवी करवी पडे छे ते कर्मग्रंथटीकामध्ये कां छे. “शरीरपर्याप्तापर्याप्तस्यसप्तविंशतिः" इत्यादि तथा जे आहारकनी अवगाहनामुंड हस्ते छे तेमाटे मध्यप्रदेशे तैजसकार्मण छे इंम जाणवुं तथा औदारिकशरीरवंत प्रथमयी आहारकपुद्गलग्रहे तेपण औदारिकशरीरथी लेतो नथी, जे औदारिक आहारकबंधन नथी तेपण आत्मप्रदेशगत आहारकनामकर्मनी प्रकृति तेपण कार्मणवर्गणारूप जे उदय थइ तेहने उदये आहारकसमुद्घात करे, तेणे प्रदेश बाह्य नीकले. ते प्रदेश तैजसकार्मणशरीर छे. ते शरीरथी नवा आहारकवर्गणाना पुद्गल आहारे ते सर्वप्रदेशे आहारे ते पछे सर्व प्रदेशे आहारकशरीर छे एक अष्टप्रदेश ते अचल छे तथा श्रेणिगत प्रदेश सर्वने तैजसकार्मण शरीर छे ते पछे आहारकशरीर उदय छे इंम जणाय छे, इहां किहां औदारिक उदय मान्यो. हवे तेजो प्रशस्तआचार्य वचन
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