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श्रीदेवचन्द्रजीकृत छूटक प्रश्नोत्तर.
ए तेजोप्रदेवोदयरूप गणवो. पण विपाकी नथी. तथा वैक्रिय शरीने पण इंगहोज जाणवो. हां - चक्रवर्ति भोगकाले ६४ हज प क छे
तिन थे भोग मूलगेरूप करे छे से मूसो आदारिक शरीर छ ? तिहां इंम छे जे चक्रवर्ति ६४ हजाररूप करे छे ते बहुरूपिणी विद्यानी पेरे औदारिक शरीरनाज छे पण वैक्रिय नयी तथा श्रीभगवतीसूत्रे “पडाओपडसहस्सं घडाओघडसहस्सं पाठे घडा एकमांथी हजारेबंध घडा काढे ए पण वैक्रिय नथी अवकरीया भेदे घडामांथी घडा काढे छ तिम औदारिक शरीरमांथी औदारिक शरीर काढे छे ए अक्षर पण ग्रंथांतरे दीठा छे पण ते ग्रंथ पासे नथी. आहारक कर्याथकां पूर्वशरीरमध्ये आत्मप्रदेश छे ते तैजसकार्मणशरीरी छे पण औदारीक शरीरी नथी अने आहारक करे तेपण इहां ३ वर्गणानो करे छे. तथा आहारकशरीरी करतां औदारिकमिश्र मान्यो छे ते पूर्वग्रहीत औदारिक पुद्गल जे छ, अने नवा ग्रह्या जे आहारक पुद्गल ते भेला थया माटे मिश्र छे परं आहारकथी औदारिक ग्रहण नथी. आहारक मूकतांकाले पण प्रथमथी औदारिकपुद्गल ते कामणथी लेवराइ छे इंम जणाय छे, पछे तो आगम अनंत छे. तथा तुम्हे विष्णुकुमार आश्री लिख्युं ते वैक्रियशरीर करतां
औदारिक शरीर ते पण वैक्रिय माहेज समाणो छे अने ते औदारिक पुद्गल ते वैक्रियने उदयबले वैक्रियपणे परिणमे, पुद्गलनो पलटणस्वभाव छे तेमाटे जे वैक्रियसमुद्वात करतां सोल जाति रत्नना पुद्गल तेह पलटावी वैक्रियपणे परिणमावी लेवे छे, अने जे वैक्रियशरीर धणा करे छे तेहने औदारिक मध्ये जे प्रदेश छे तेहनी बे परिपाटी छेजी मूलगा शरीर पण पलटीने
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