________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
114
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
विचार रत्नसार.
९०५
बादरनिगोदमां आवे वली बादरना सूक्ष्ममाहे जाय एम बेस्थानके आवागमन करता जीव उत्कृष्टो रहे तो अढी पुगलपरावर्तनपर्यंत रहे पछी पृथ्वीआदिक स्थानके फरसतो उंचो आवीने मनुष्य थाय, तीहां व्यवहारराशियो भव्यजीव सामग्री मळे बोधिबीज पामी सिद्धिवरे तथा वली कोइ वाचनाए इम कयुं छे जे कंदमूलसाधारणमांहिथी जीव सूक्ष्मगोलकमांहे जाय तो उत्कृष्ट काल रहे तो असंख्याती उत्सर्पिणी अवसर्पिणी काल सुधी सूक्ष्मनिगोदना गोलकमांहे रहे, तिहांथी नीकळ्यो बादरनिगोदमांहे उत्कृष्टशे ७० कोडाकोडी सागर सुधी रहे, एम सर्वे बे निगोद मळी आवागमन करतां उत्कृष्टे अढीपुद्गलपरावर्त सुधी व्यवहार राशियो जीव निगोदमांहि रहे. एकनिगोदनो गोलो असंख्याता आकाशप्रदेश अवगाहि रह्यो छे. तथा अव्यवहारराशिया जे निगोदमांहि छे ते भवस्थितिनी परिपक्वता सुधी उंचा आवे ते एकसमये केटला नीकळे ? जेटला अढीद्वीपमांहिथी सकलकर्म खपावी एकसमये जेटला सिद्धिवरे तेटला सूक्ष्म निगोदमांहेथी निकळी व्यवहारराशिमां आवे एक समये एक, बे, त्रण उत्कृष्टे एकसमये अढीद्वीपमांहे १०८ सिद्भिवरे तेटला सूक्ष्मनिगोदमांहेथी निकळे व्यवहारराशिपणो पामे तथा व्यवहारराशियो निगोदना गोलामांहे जाय तो एकसमये एक, बे, त्रण एम अनंता सुधी जाय ते व्यवहारराशिया निकले
१५३
For Private And Personal Use Only