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कर्मग्रन्थस्य टबार्थः
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उत्कृष्ट योगबल असंख्यातगुणो. ९ सूक्ष्म पर्याप्त जघन्य योगीनो योगबल असंख्यातगुणो. १० तेहथी बादर पर्याप्त जघन्य योगीनो योगबल असंख्यातगुणो, ११ तेहथी सूक्ष्म पर्याप्त उत्कृष्ट योगीनो योगबल असंख्यातगुणो. १२ तेहथी बादर पर्याप्त उत्कृष्ट योगीनो योगबल असंख्यातगुणो. १३ ॥५३॥ असमत्ततमुक्कोसो, पजजहन्नियर एव ठिइठाणा। अपज्जेयर संखगुणा, परमऽपजबीए असंखगुणा॥५४॥
अर्थ-असमत्त-अपर्याप्त ५, नो उत्कृष्ट योगीनो योगबल असंख्यातगुणो. ते पछी त्रस ५, पर्याप्ता जघन्य योगीनो योगबल असंख्यातगुणो, तेथी त्रसना ५, पर्याप्ता उत्कृष्टयोगीनो असंख्यातगुणो योग छे ते कहे छे-चौदमे बोले अपर्याप्त बेन्द्रि उत्कृष्टयोगीनो योगबल असंख्यातगुणो १५, तेहथी अपर्याप्त चौरेन्द्रिनो उत्कृष्टयोग असंख्यातगुणो, १६, तेहथी अपर्याप्त असंज्ञिपंचेन्द्रिनो उत्कृष्ट योगबल असंख्यातगुणो १७ तेहथी अपर्याप्त संज्ञिपंचेन्द्रिनो उत्कृष्टयोग असंख्यातगुणो १८, तेहथी पर्याप्त बेइन्द्रिनो जघन्ययोग असंख्यातगुणो १९, तेहथी पर्याप्त तेइन्द्रिनो जघन्ययोग असंख्यातगुणो २०, तेहथी पर्याप्ता चौरेन्द्रिनो जघन्ययोग असंख्यातगुणो २१,तेहथी पर्याप्ता असंज्ञिपंचेन्द्रिनो जघन्ययोग ख्यातगुणो २२, तेहथी पर्याप्ता संज्ञिपंचेन्द्रिनो जघन्य योग असंख्यातगुणो, २३ तेहथी पर्याप्त बेन्द्रिनो उत्कृष्टयोग असंख्यातगुणो, २४ तेहथी तेन्द्रिपर्याप्तो तेनो उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणो, २५ तेथी चौरेन्द्रि पर्याप्तानो उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणो, २६ तेहथी असंज्ञिपंचेन्द्रि पर्याप्तानो उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणो, २७ तेथी संज्ञिपंचेन्द्रि
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