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विचार रत्नसार.
मूळ ज्ञान, दर्शन अने चारित्र ए मुख्य गुण छे; तेमां दर्शन तो सामान्य अवबोधरूप होवाथी ते विशेष अवबोधरूप ज्ञानगुणमां समाय छे, तेथी ज्ञान अने चारित्र बे रह्यां, तेमां ते निमित्त कारण, अने चारित्र ते उपादान कारणरूप छे ते उपादान कारण सेवनरूपे चार संज्ञानी मंदताए जीव उंचो
चढे छे. ९८ प्र०-सिद्धना जीवने अनंता गुण छे, ते समपणे छे के
विषमपणे छे ? उ०-निरावरणआश्रयी समगुणे छे, पण आप आपणा
गुणना पर्याय धर्माश्रयीविषमपणे छे. ९९ प्र०-प्राणेकरी जे जीवे तेने जीव कहिए तो सिद्धने
जीव केम कहेवामां आवे छे ? 3०-सिद्धने द्रव्यप्राण नथी, पण भावप्राण चार छे, तेनां
नामः-१ अनंतज्ञान, २ अनंतदर्शन, ३ अनंतसुख, अने ४ अनंत वीर्य; ए चार भावप्राणे सिद्ध जीवे छे, तेथी सिद्धने जीव कहीए, ए भावप्राण आवरणे द्रव्यप्राण सांपडे छे, ते कर्मजनित छे. केम जे स्वाभाविक अनंतदर्शनरूप भावप्राणने आवरणे इंद्रियप्राण थया, तेमज स्वज्ञानरूप भावप्राणने आवरणे श्वासोश्वास प्राण उपज्यो, स्वाभाविकसुखरूप भावप्राणने आवरणे आयुप्राण उपज्यो; स्वाभाविक अनंतबळ. वीर्यप्राणने आवरणे मनोवळ, वचनबळ, कायबळ, ए विभाविक प्राण उपज्या. ए अधिकार अध्यात्मसार ग्रन्थ मध्ये कह्यो छे,
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