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कर्मग्रन्थस्य टबार्थः
त्व ने मिश्रपुंज अवश्य सत्तामां होय, ते बन्ने पुंजने मिथ्यात्वे प्रथम समयथी उवेलवा मांडे ते यावत् पल्योमना असंख्यातमे भागे उवेली रहे, ने ज्यांसुधी ए बे पुंज सत्तामां होय त्यां सुधी पुनः उपशम पामे नहि, ने सास्वादने पण न आवी शके, ते माटे जवन्य अंतर पण पल्योपमनो असंख्यातमो भाग पडे, तथा इयरगुण-बीजां जे गुणठाणांमिथ्यात्व १, मिश्रादिक उपशान्तमोह पर्यंत नव १० गुणठाणे जवन्य अंतर अंतर्मुहूर्त्तनो पडे, जे कारणे ए गुणठाणे चढतो तथा पडतो पिण आवे ते माटे तथा गुरु-उत्कृष्टो अंतर मिथ्यात्व गुणठाणानो बे छसट्ठी-१३२ एकसोबत्रीस सागरोपमनो उत्कृष्टो अंतर पडे, जे कारणे छासठ सागर क्षयोपशम समकितपणे रहे, पछी अंतर्मुहूर्त मिश्रपणे रही वळी छासठ सागरोपम क्षयोपशम समकितपणे रहे तिवारे मनुष्यभव साधिक १३२ सागर काल पर्यंत मिथ्यात्व स्पश्यों नही, ते मिथ्यात्वनो अंतर इयर-सास्वादनादिक दश गुणठाणानो उत्कृष्ट अंतर अर्द्ध पुद्गल परावर्तकाल देश ऊंणो जे एटलो काल समकीतथी पड्यो मिथ्यात्वमें रही पछी पाछो समकित पामी मोक्षे जाय ते माटे अंतर कह्यो. ॥ ८४ ॥ उद्धार अद्ध खित्तं, पलिय तिहा समयवाससयसमए। केस वहारो दीवो, दहि आउतसाइ परिमाणं ॥५॥ ___ अर्थ-हवे पुद्गल परावर्तननो मान कहेवा माटे पल्योपमनो स्वरुप कहे छे. पल्योपमना ३ त्रण भेद छे. उद्धारपल्योपम १, अद्धापल्योपम २, क्षेत्रपल्योपम ३ ए पल्योपमना ३ तीन भेद छ, तिहां उद्धार पल्योपमनो मान समये
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