________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
--....
NAVARANAaniurvAvvv.in
७०६ कर्मग्रन्थस्य टबार्थः शोकमोहनी १, वैक्रिय शरीर, वैक्रिय उपांग, ए बे, तिर्यंचगति तिर्यंचानुपूर्वी, ए बे, औदारिक शरीर, औदारिक उपांग ए बे, नरकगति, नरकानुपूर्वी ए बे, नीचैर्गोत्र १. तैजस पांच-तैजस १, कार्मण २, अगुरुलघु ३, निर्माण ४, उपवात ५, ए पांच अथिरछक्क ते अथिर १, अशुभ २, दुर्भग ३, दुःस्वर ४, अनादेय ५, अजस ६, ए छ. त्रस ४, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक ए च्यार ४, थावर १, एकेन्द्री १, पंचेन्द्री १. ॥ ३१ ॥ नपुकुखगइसासचउ, गुरु कक्खड रुख्खसीय दुग्गंधे वीस कोडाकोडी, एवइआवाहवाससया ॥ ३२ ॥ ___अर्थ-नपुंसकवेद १, अशुभविहायोगति १, श्वासोश्वास चतुष्क-४, उश्वास १, उद्योत १, आतप १, पराघात १, गुरु-भारेफरस १, कर्कश फरस १, रुक्ष-लूखो फरस १, शीतटाढो फरस १, दुर्गध १, ए ४२ बेताळीस प्रकृतिनी उत्कृष्टी स्थिति वीस २० कोडाकोडी सागरनी जाणवी. एवइया एटलां वरस सय-सो वर्ष अबाधा जाणवी. एटले जे. कर्मनी जेटली कोडाकोडी स्थिति तेटला सो वरसनी अबाधा. बांध्या पछी तेटला सो वरस सीम (सुधी) उदय न आवे ते अबाधा कहीये. ॥ ३२॥ गुरु कोडि कोडिअंतो, तित्थाहाराणभिन्नमुहुवाहा। लहुठिइसंखगुणूणा, नरतिरियाणा उपल्लतिगं ॥३३॥
अर्थ--गुरु केहेतां उत्कृष्टी अंतो केहेतां मांही एटले कांइक उणी एक कोडाकोडी सागर तीर्थकर नामनी तथा
For Private And Personal Use Only