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कर्म्मग्रन्थस्य टबार्थः
अर्थ - केवळदुगे - केवलज्ञान केवलदर्शनमे आपणा एहिज केवलज्ञान केवलदर्शन ए बे उपयोग छे. हवे तीन अज्ञान विना बाकी नव उपयोग-पांच ज्ञान च्यारदर्शन ए ९ क्षायिक समकीत में तथा यथाख्यातचारित्र २, ए बे मार्गणामे छे. दर्शन ३, चक्षु १, अचक्षु १, अवधि १, तीनज्ञान मति १, श्रुत २, अवधि ३, ए छ ६ उपयोग देसविरतिमें अने एहिज छ उपयोग अज्ञान मिश्रित कीजे, ज्ञान काढीजे एटले दर्शन तीन ३ अज्ञान तीन ३, ए छ ६ उपयोग मिश्रमें छे. ॥ ३६ ॥
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मणनाण चक्खु वज्जा, अणहारे तिन्नि दंसचउ नाणा | चउनाण संजमोवसम, वेअगे ओहि दंसेय ॥ ३७ ॥
अर्थ -- मनः पर्यवज्ञान १, चक्षुदर्शन १, ए दोय काढीजे बाकी अनाहारकमें दश उपयोग १० छे. तीन दर्शन-चक्षु १, अचक्षु २, अवधि ३, च्यार ४, ज्ञान मतिज्ञान १, श्रतज्ञान २, अवधिज्ञान ३, मनः पर्यवज्ञान ४, ए सात उपयोग ते च्यार ज्ञानमें ४, व्यार ४, संयम में ४, उपशम समकीत १, क्षयोपशम समकीतमे १, अवधिदर्शनमे १, ए इग्यारे ११, मार्गणामे पूर्वोक्त ७, सात उपयोग छे. हिवे मतान्तर कहे छे - मनोयोग जीवभेद पेहेली १ को छे. इहां सत्ताभावी गुण विचारतां जीवभेद बे २ छे. सन्नी पर्याप्तो अपर्याप्तो गुणठाणा तेर छे. ॥ ३७ ॥
दो तेरतेर बारस मणे, कमां अट्ठ दु चउ चउ वयणे । चउदु पण तिन्निकाए, जिय गुणजोगोवओगन्ने ॥३८॥ अर्थ -- योग तेर छे. उपयोग १२ छे, मनोयोगमे अने
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