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कर्मग्रन्थस्य टबार्थः
बंधाय छे ते कहे छे ते सांभळो-त्रीजी चोकडी ४, सोग २, अरति १, अथिर २, अयश १, असाता १, देवायु, १, निद्रा २, देव २, पंचेन्द्री १, शुभविहायोगति १, त्रस ९, नवक, शरीर ३, उपांग १, समचउस्स १, निर्माण १, वर्ण ४, अगुरुलधु ४, हास्य १, रति १, भय १, दुगंछा १, पुरुषवेद १, संजलण ४ दर्शनावरणि ४, ज्ञानावरणि ४, अंतराय ५, जस १, उंचगोत्र १, ए ६५ पांसठ प्रकृति विण्य ३, प्रत्ययथी बंधाय छे. आहारकद्विक २, जिण ? ए त्रण्य ३ प्रकृति कषाय योगथी बंधाय छे ए १२० प्रकृतिनो बंध छे. ॥५६॥ पणपन्न पन्नतिय छहिय, चत्त गुण चत्त छ चउदुग वीसा सोलस दस नवनवसत्त, हेउणो नउ अजोगंमि ॥५७॥ , अर्थ-हवे गुणठाणे हेतु कहे छे. मिथ्यात्व गुणठाणे ५५ पंचावन हेतु छे, सास्वादनमे पचास ५० हेतु छे. मिश्रमे त्रेतालीस हेतु छे. समकीत गुणठाणे ४६ छेताळीस बंधना हेतु छे. देशविरति गुणठाणे ३९ ओगणचालीस बंधहेतु छे. प्रमत्त गुणठाणे छवीस २६ बंघहेतु छे. अप्रमत्त गुणठाणे २४ चोवीस बंधहेतु छे. अपूर्वकरण आठमे गुणठाणे बावीस २२ बंधहेतु छे. अनिवृत्तिबादर गुणठाणे १६ सोळ बंधहेतु छे. सूक्ष्मसंपरायमे दश १० बंधहेतु छे. उपशांतमोहमे नव बंधहेतु छे. क्षीणमोहमे नव बंधहेतु छे. सयोगिकेवळीमे सात बंधहेतु छे,
अयोगी गुणठाणु अबंधक छे, तेथी त्यां कोई बंधहेतु नथी. ॥५॥ पणपन्न मिच्छहारग, दुगुण सासाणिपन्नमिच्छविणा। मिस्सदुगकम्मअणविणु, तिचत्तमीसे अहछचत्ता ५८
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