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देवचंद्रजीकृत नयचक्रसार.
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जे क्षेत्र
के एक
वारे पा
प्रमेयत्व, अगुरुलघु आदिक समस्त पर्याय गुणा विभागादिक ते सर्वन आधारभूत क्षेत्र ते प्रदेश छे ते स्व के० पोताना जे क्षेत्र ते सर्व भेदरूप जुदा जुदा छे एटले संख्याता प्रदेश मिन छे पण ते एक पिंडपणो किवारे तजता नथी, सर्व प्रदेशमां अंतराल क्षेत्रपणो कोईवारें पामतो नथी जे अनंता स्वभाव, अनंत पर्याय, ते असंख्यात प्रदेश रूप तेनुं प्रमाण फिरतुं नथी एवो जे द्रव्यने विषे समुदाय पिंडपणो रहे छे ते एक स्वभाव कहिये. ते पंचास्तिकायमध्ये १ धर्म, २ अधर्म, ३ आकाश, ए त्रण द्रव्य एकेक छे अने जीव द्रव्य अनंता छे तेथी पुद्गल परमाणु अनंत गुणा छे. ते एक जीव अनेक रूप नव नवा करे पण अंतर पडे नहीं ते माटे द्रव्यमध्ये एक स्वभाव छे.
क्षेत्र असंख्यात प्रदेश काल उत्पाद व्ययरूप भाव पर्याय गुणना अविभाग ते पोताना मिन्नकार्य परिणामी छे ते सर्वनो मिन्न प्रवाह छे एटले सर्वनो कार्यपणो मिन छे ते माटे द्रव्यने सर्व स्वभाव पर्याय भेदें विचारतां द्रव्यमां अनेक स्वभाव पण छे. जो वस्तुमा एकपणानो अभाव मानियें तो सामान्यपणो रहे नही अने गुणनो पर्यायनो स्वामी आधार ते कोण थाय ? अने आधार विना गुणादि आधेय ते क्यां रहे ? ते माटे द्रव्यनो एकपणो छे. जो वस्तुमां अनेकपणो न मानियें तो द्रव्य ते विशेष रहित थई जाय तेथी गुणनो अनेकपणो शी रीते द्रव्यनेविषे पामिये ? माटे द्रव्यमा गुणकार्यनो अनेकपणो पण छे तथा स्वस्वामित्व व्याप्य व्यापकभाव केम ठेरे ? जे गुण पर्याय ते स्व के० धन अने द्रव्य ते तेनो स्वामी छे अथवा द्रव्य ते व्याप्य अने गुण पर्याय
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