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कर्मग्रन्थस्य वार्थः
तचारित्र ५, देशविरति ६, अविरति ७. हवे ४ दर्शन नाम कहे छे-चक्षुदर्शन १, अचक्षुदर्शन २, अवधिदर्शन ३, केवल दर्शन ४. ए च्यारे दर्शन अनाकार उपयोग-सामान्य उपयोग छे. ॥ १५ ॥ किण्णहानीलाकाऊ-तेऊपम्हा य सुक भविअरा। वेअगखइगुवसममिच्छमीससासाण सनिअरे ॥१६॥
अर्थ-हवे छ लेश्यानां नाम कहेछे-कृष्ण लेश्या १, नीललेश्या २, कापोतलेश्या ३, तेजोलेश्या ४, पद्मलेश्या ५, शुक्ललेश्या ६. हवे भव्ये नाम कहे छे-भव्य १, अभव्य २. समकीते कहे छे-क्षयोपशम समकीत १, क्षायक समकीत २, उपशम ३, मिथ्यात्व ४, मिश्र ५, सास्वादन ६. संज्ञी १, असंज्ञी २. १६ आहारेअरभेआ, सुरनिरयविभंगमइसुओहिदुगे। समत्ततिगे पम्हा, सुक्कासन्निसु सन्निदुगं ॥ १७ ॥ ____अर्थ-आहारक १, अणाहारक २. ए बासढ़ मार्गणानां नाम कयां. हवे बासठ मार्गणाए १४ भेद कहे छेन्देवगति १, नरकगति २, विभंग अज्ञान ३, मतिज्ञान ४, श्रुतज्ञान ५, अवविज्ञान ६, अवधिदर्शन ५, उपशम ८, क्षायक ९, क्षयोपशम १०, पद्मलेश्या ११, शुक्ललेश्या १२, संज्ञी १३, ए तेर १३ मार्गणा संज्ञीपंपेन्द्री पर्याप्तो अने संज्ञीपंचेन्द्री अपर्याप्तो ए बे जीवस्थानके लाभे बीजा नही. ॥१७॥ तमसन्नि अपजजुअं, नरे सबायरअपजतेऊए । थावरइगिंदि पढमा,चउबार असन्नि दुदु विगल॥१८॥
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