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कर्मग्रन्थस्य वार्थः
६४७
सुरनरतिरिनिरयगई, इगबिअतिअचउपणिदि छक्काया। भूजलजलणाऽनिलवण, तसा य मणवयतणुजोगा १३
अर्थ -- हवे गति ४ नां नाम कहे छे – देवगति १, मनुष्यगति २, तिर्यंचगति ३, नरकगति ४. हवे पांच इन्द्री कहे छे- एकेन्द्री १, बेन्द्री २ तेंद्री ३, चौरेन्द्री ४, पंचेन्द्री ५. हवे छकाय कहे छे - पृथ्वीकाय १, अप्काय २, तेउकाय ३, वायुकाय ४, वनस्पतिकाय ५, सकाय ६. तीन योगनां नाम कहे छे - मनोयोग १, वचनयोग २, काययोग ३. ॥ १३ ॥ वेअनरित्थिनपुंसा, कसायकोहमयमायलोभत्ति । मइसुअओहिमणकेवल - विभंगमयसुअ अनाणसा
गारा ॥१४॥
अर्थ- हवे वेद त्रण नाम कहे छे- पुरुषवेद १, स्त्रीवेद २, नपुंसकये ३. ढवे कषाय ४ च्यारना नाम कहे छे-क्रोध १, मान २, माया ३, लोभ ४. दवे ज्ञान पांच, अज्ञान त्रण नाम कहे छे. मतिज्ञान १, श्रुतज्ञान २, अवधिज्ञान ३, मनः पर्यवज्ञान ४, केवलज्ञान ५. मतिअज्ञान १, श्रुतअज्ञान २, विभंगज्ञान ३. ए आठ साकारोपयोग-विशेष उपयोग कहीजे. १४ सामाइयछेयपरिहार- सुहुम अहक्खाय दसजयअजया । चख्खू अचरख ओही, केवलदंसण अणागारा ॥ १५॥
अर्थ -- हवे सात संयममार्गणा नाम कहे छे- सामायक १, छेदोपस्थापना २, परिहारविशुद्धि ३, सूक्ष्मसंपराय ४, यथाख्या
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