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कर्मग्रन्थस्य टबार्थः चउदसगुणेसु जिअजो-गुवओगलेसा य बंधहेऊ य। बंधाइअचउअप्पा बहुं, च तो भावसंखाई ॥
पाठान्तरम् । चउदसगुणठाणेसु, जिअजोगुवओगलेस्सबंधा य। बंधुदयुदीरणाओ,संतप्प बहुत्तदसट्ठाणा दारगाहाओ४
हवे पेहेला जीवना चौद भेद कहे छे. इह सुहुमबायरेगिंदि, बितिचउ असन्नीपंचिंदी। अपजत्ता पजत्ता, कमेण चउदस जियठाणा॥५॥
अर्थ-सूक्ष्म एकेन्द्रिय ए एक भेद १, बादर एकेंद्रिय ए बीजो भेद २, बेंद्री ३, तेंद्री ४, चौरेंद्री ५, असंज्ञी पंचेन्द्री ६, संज्ञी पंचेन्द्री ए सात ७ पर्याप्ता, अने ए ७ सात अपर्याप्ता ए अनुक्रमे संसारी जीवनां १४ चौद स्थानक जाणवां.॥५॥ ___ हवे चौदे जीवस्थानके गुणठाणां कहे छे. बायरअसन्निविगले, अप्पजिपढमविअसन्निअपज्जत्ते। अजयजुअसन्निपजे, सवगुणा मिच्छसेसेसु ॥६॥ ____ अर्थ-बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तो १, असंज्ञी पंचेन्द्री अपर्यातो २, बेंद्री अपर्यातो ३, तेंद्री चौरेंद्री ५, अपर्याप्तो ए पांच जीवस्थानक भेदे पेहेलो मिथ्यात्व १, बीजो सास्वादन २, ए बे गुणठाणा छे अने संज्ञी पंचेन्द्री अपर्याप्तो इण एक जीवस्थानकमें तीन गुणठाणा छे. प्रथम मिथ्यात्व १, सास्वादन २, अने अविरति समकित ३ ए त्रण छे. संज्ञी पंचेन्द्री पर्याप्तामें इणे एक जीवभेदमांहे सर्व १४ गुणठाणा
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