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कर्म्मग्रन्थस्य स्वार्थः
धर्म उपर न राग न द्वेष ते मिश्र कहीजे ३, नवतत्त्व सुधा सद्दहे ते अविरति समकित कहीजे ४, समकीत सहित श्रावकत्रत पाळे ते देशविरति कहीजे. ५, साबुना पंच महाव्रत पाळे पिण प्रसाद सेवे ते प्रभत्त कहीजे ६, प्रनाद सेवे नहीं ते अप्रमत्त कहीजे ७, प्रति समय अध्यवसायो भित्र भिन्न होवाथी निवृत्तित्रादर कहीजे ८, ज्यां क्रोध, मान, माया, उपशमावे अथवा खपावे ते अनिवृत्तिवादर वहीजे ९, लोभ उपशमावे खपावे ते सूक्ष्मसंपराय कहीजे १०, मोह उपशमावे ते उपशान्त कहीजे ११, मोहनीकर्म खपावे ते क्षीणमोह कहीजे १२, च्यार कर्म. खपावे, केवलज्ञान पामे ते सजोगी केवली, कहीजे १३, अघाती च्यार कर्म खपावे, मोक्ष जाय ते अजोगी केवळी कहीजे १४. हवे चौद गुणठाणानी स्थिति कहे छे+- मिध्यात्वगुणठाणानी स्थिति अभ व्यने अनादि अनंत, भव्य ग्रंथि भेदे नहीं तेने अनादिसांत, समकीत पडी मिथ्यात्वमे पडे तेहने जघन्य अंतर्मुहूर्त, उत्कृष्ट अनंतो काल १ सास्वादननी स्थिति ६ छ आ वळी छे. २. मिश्रनी स्थिति जवन्यने उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्तः सम्यक्त्व गुणस्थानती उत्कृष्ट ३३ सागर. देशविरतिनी उ देशूण
पूर्व कोड वर्ष प्रमत्त एहनी जवन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृट देशे
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उणी पूर्व कोड. ( सर्व स्थिति एकत्र करतां ) आटमे गुणठाणे ( तथा अप्रमत्तना जघन्य समय ने उत्कृष्ट स्थिति अंतर्मुहूर्तने प्रवाहापेक्षा देशण पूर्व कोड वर्ष) शुं मांडी : बारमा तांई ( सुधी) पांच गुणठाणानी जघन्य एक समय. बारमानी जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट प्रत्येके अथवा सर्वनी एक अंतर्मुहूर्त, तेरणा गुणठाणानी स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्स, उत्कृष्टी देशें ऊंण पूर्वकोडी.
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