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देवचंद्रजीकृत नयचक्रसार..
. १७७ ~~~~~~~~~~~~ विषय छे एटले थोडो विषय छे केमके सत्तामात्रनो ग्राहक संग्रहनय छे. छति सत्ताने संग्रहनय ग्रहे अने नैगम ते छता भाव अथवा संकल्पपणे अछता भाव सर्वने ग्रहे अथवा सामान्य विशेष बे धर्मने ग्रहे ते माटे नैगमनो विषय घणो छे. तथा संग्रहनय ते सत्तागत सामन्य विशेष बेहुने ग्रहे छे, अने व्यवहार ते सत् एक विशेषनेज ग्रहे छे; माटे संग्रहनयथी व्यवहारनयनो विषय थोडो छे अने व्यवहारनयथी संग्रहनय ते बहुविषयी छे. तथा ऋजुसूत्रनय ते वर्तमान विशेष धर्मनो ग्राहक छे, अने व्यवहारथी ऋजुसूत्रनय ते कालविषयनो ग्राहक छे; ते माटे व्यवहार बहुविषयी छे अने व्यवहारथी ऋजुसूत्र अल्पविषयी छे. ऋजुसूत्रनय ते वर्तमानकाल ग्रहे, अने शब्दनय कालादि वचन लिंगथी वेहेंचता अर्थने ग्रहे, अने ऋजुसूत्रनय ते वचन लिंगने मिन्न पाडतो नथी; ते माटे ऋजुसूत्रथी शब्दनय अल्पविषयी छे, ऋजुसूत्र बहुविषयी छे. अने शब्दनय सर्व पर्यायनो एक पर्यायने ग्रहता ग्रहे, अने समभिरूढ ते जे धर्म व्यक्त ते वाचक पर्यायने ग्रहे; ते माटे शब्दनयथी समभिरूढनय ते अल्पविषयी छे. केमके सममिरूढ ते पर्यायनो सर्वकाल गवेष्यो छे, अने एवंभूतनय ते प्रतिसमये क्रियाभेदें भिन्नार्थपणो मानतो अल्पविषयी छे ते माटे एवंभूतथी समभिरूढ बहुविषयी जाणवो अने एवंभूत अल्पविषयी जाणवो.
जे नय वचन छे ते पोताना नयने स्वरूपें अस्ति छे, अने परनयना स्वरूपनी तेमां नास्ति छे; एम सर्व नयनी विधिप्रतिषेधे करीने सप्तभंगी ऊपजे पण नयनी जे सप्तभंगी ते
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