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देवचंद्रजीकृत नयचक्रसार.
जीव द्रव्य अनंता छे. अकृत सदा छता अखंड द्रव्य छे. सत्चिदानंदमयी छे पण परपरिणामी थवे पुद्गलग्राहक पुद्गलभोगी थवे प्रतिसमये नवा कर्म बांधवे संसारी थया छे. तेहिज जे वारे स्वरूप ग्राहक स्वरूप भोगी थाय तेवारे सर्व कर्म रहित थयी परम ज्ञानमयी, परम दर्शनमयी, परमानंदमयी, सिद्ध, बुद्ध,अनाहारी, अशरीरी, अयोगी, अलेशी, अनाकारी, एकांतिक, आत्यंतिक, निःम यासी, अविनाशी, स्वरूप सुखनो भोगी, शुद्ध सिद्ध थाय ते माटे अहो चेतन !!! ए पर भाव अभोग्य सर्व जगत्ना जीवनी एठ तेनो भोगववापणो तजी स्वभाव भोगीपणानो रसीयो थयी स्वस्वरूप निर्धार स्वरूप भासन, स्वरूप रमणी, थयी पोताना आनंदने प्रगट करीने निर्मल था.
तथा आकाश द्रव्य ते लोकालोक मिलि एक द्रव्य छे, अनंत प्रदेशी छे। अने पुद्गल द्रव्य ते परमाणु रूप छे केम के परमाणु अनंता छे माटे अनंता गव्य छे इहां कोई पूछे जे प्रदेशना संबंध विना परमाणु द्रव्यने अस्तिकाय किम कह्यो छे ? तेने उत्तर जे परमाणु तो एक प्रदेशी छे पण अनंता परमाणुथी मिलवाना जे कारण ते आ द्रव्य तेणे युक्त छे ते योग्यता माटे अस्तिकाय कह्यो छे तथा काल द्रव्यने उपचारें भिन्न द्रव्यपणो कयो छे ते व्यवहारनयनी अपेक्षायें जे मनुष्य क्षेत्रने विषे सूर्यनी गतिने परिज्ञाने एटले समयावलिकादिरूपपरिमाणे जे मान तेने व्यवहारथी काल कहिये इति ए काल मुख्य वृत्तिये तो समय क्षेत्र मध्ये छे अने मनुष्य क्षेत्रयी बाहेर जे जीवो छे तेना आयुष्य पण एज क्षेत्र प्रमाणे सर्वज्ञ देवें कह्या छे तथा सूर्यनोचारते पण जीव पुद्गलनुं प्रवर्तन के कारण के सूर्य ते पण जीव तथा
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