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देवचंद्रजीकृत नयचक्रसार.
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हानि, ३ संख्यात भाग हानि, ४ संख्यात गुण हानि, ५ असंख्यात गुण हानि, ६ अनंत गुण हानि, ए छ प्रकारनी हानि, तथा १ अनंत भाग वृद्धि, २ असंख्यात भाग वृद्धि, ३ संख्यात भाग वृद्धि, ४ संख्यात गुण वृद्धि, ५ असंख्यात गुण वृद्धि, ६ अनंत गुण वृद्धि. ए छ वृद्धि. एम छ प्रकारनी हानि तथा छ प्रकारनी वृद्धि ते अगुरुलघु पर्यायनी सर्व द्रव्यने सर्व प्रदेशे परिणमे छे ते कोइक प्रदेशे कोइ समये अनंतभाग हानिपणे परिणमे छे अने कोइक समये कोइक प्रदेशे अनंतभाग वृद्धिपणे परिणमे छे. एवं बार प्रकारे परिणमे छे ते अगुरुलघु पर्यायनी परिणमन शक्ति ते अगुरुलधुत्वं. अगुरुलघुनो भाव जाणवो. तत्त्वार्थ टीकाने विषे पांचमा अध्यायें अलोकाकाशने अधिकारें कह्यो छे. एम ए छ स्वभाव सर्व द्रव्यने विषे परिणमे छे. ए छ ए द्रव्यनो मूल स्वभाव छे. द्रव्यनो भिन्नपणो प्रदेशनो भिन्नपणो ते अगुरुलधुने भेदपणे थाय छे ते माटे ए छ मूल सामान्य स्वभाव छे. ए द्रव्यास्तिक धर्म छे अने एनुं परिणमन ते पर्यायास्तिक धर्म छे. केटलाक वादी एम कहे छे जे पर्यायनो पिंड ते द्रव्य छे पण द्रव्यपणो भिन्न नयी जेम धूरी पइडा कागमो १ डागली जूंहरी प्रमुख समुदायने गाडो कहिये पण सर्व अवयवथी भिन्न गाडापणो कोइ देखातो नथी तेमज ज्ञानादिक गुणथी मिन्नपणे कोइ आत्मा देखातो नथी तेने कहिये जे ज्ञानादिक गुणने विषे छति एक पिंड समुदायता सदा अवस्थितपणो अने द्रव्यथी मिली न जाय तथा स्व क्रियावंतपणो इत्यादिक सामान्य धर्म छे. छति अस्तित्व अर्थ क्रियावंत ते द्रव्यपणो एक पिंडपणो ते वस्तुत्य इत्यादिक ते सर्व दव्यपणो छे एटले द्रव्यास्तिक पर्यायास्तिक ए बेहु मलीने
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