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डॉ. विभूतिनारायण सिंह शर्मदेव की अध्यक्षता एवं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. वाई.सी. सिम्हाद्रि के मुख्यातिथित्व में सम्पन्न हुआ।
प्रकाशन संस्थान के निदेशक ने मञ्चस्थ सभाध्यक्ष एवं अन्य अतिथियों को माल्यार्पण कर स्वागत किया। इसके बाद विभिन्न संघों के अधिकारियों एवं विद्वानों ने माल्यार्पण किया। 'सारस्वती सुषमा' पत्रिका का परिचय देते हुए प्रकाशन निदेशक डॉ. हरिश्चन्द्र मणि त्रिपाठी ने कहा कि इसका इतिहास बहुत पुराना है। इस विश्वविद्यालय की पूर्व-संस्था राजकीय संस्कृत कालेज के द्वारा सन् १८६६ ई.में 'दि पण्डित पत्रिका' (काशीविद्यासुधानिधि) का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ था। १९१७ ई. तक अविच्छिन्न रूप से इसका प्रकाशन चलता रहा। उसके बाद यह पत्रिका 'सरस्वतीभवन-ग्रन्थमाला' एवं 'सरस्वतीभवनअध्ययनमाला' के रूप में प्रचलित हुई और १९४२ ई. से वही शृङ्खला 'सारस्वती सुषमा' के नाम से परिणत हुई, जो आज तक निरन्तर प्रकाशित हो रही है। आज इसका ५१वाँ अङ्क स्वर्णजयन्ती-विशेषाङ्क के रूप में प्रकाशित हो रहा है।
इसके बाद माननीय कुलपति जी के सत्सङ्कल्पानुसार लब्धप्रतिष्ठ संस्कृत के पच्चीस मूर्धन्य विद्वानों के सम्मान की शृङ्खला प्रारम्भ हुई। कुलपति प्रो.शर्मा ने चन्दन, माल्यार्पण के साथ नारिकेल, उत्तरीय, सम्मानपत्र एवं रू.५१०० (पाँच हजार एक सौ रूपये) प्रदान कर विद्वानों का सम्मान एवं अभिनन्दन किया। सम्मानित होने वाले विद्वानों में पण्डित श्रीविद्यानिवास मिश्र, प्रो.वि. वेङ्कटाचलम्, पण्डित श्रीकुबेरनाथ शुक्ल, प्रो. रामजी उपाध्याय, प्रो. विश्वनाथ भट्टाचार्य, पं. बटुकनाथ शास्त्री खिस्ते, प्रो. सुधांशुशेखर शास्त्री, पं. विश्वनाथ शास्त्री दातार, पं. श्रीवासुदेव द्विवेदी, पं. श्रीकमलाकान्त शुक्ल, पं. परमहंस मिश्र, पं. केदारनाथ त्रिपाठी आदि के नाम सम्मिलित हैं। मुख्य अतिथि के रूप में अपने उद्बोधन में प्रो. वाई.सी. सिम्हाद्रि ने कहा कि संस्कृत का महत्त्व केवल भारत में ही नहीं, अपितु पूरे विश्व में है। संस्कृत विश्व की प्राचीनतम भाषा है, जो सहस्राब्दियों से मानव-समाज का मार्गदर्शन करती आ रही है। सभा की अध्यक्षता करते हुए पूर्व-काशीनरेश एवं विश्वविद्यालय के प्रतिकुलाधिपति माननीय डॉ. विभूतिनारायण सिंह शर्मदेव ने वर्तमान स्थिति में केन्द्र एवं राज्य सरकार के संस्कृत के प्रचार-प्रसार एवं उत्थान की दिशा में अपेक्षाकृत उदासीनता पर चिन्ता व्यक्त की। संस्कृत विद्वानों
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