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(४)
- सद्यायमाला
पाला खाल जी ॥ क्रोध करी कुगतें तें पहोता, जनम गंमायो बाल जी ॥ प्र० ॥ ७ ॥ कर्म खपावी मुग़तें पहोता, खंधक सूरिना शिष्य जी ॥ पालक पापीयें घाणी पीव्या, नाणी मनमां रीश जी ॥ ० ॥ ८ ॥ कारी नारी की, त्रोड्यो पीयुशुं नेह जी ॥ बब्बर कुल सह्यां दुःख ब हुलां, क्रोध तणां फल एवं जी ॥ ० ॥ ए ॥ वाघ सर्व शरीर वलूखु, ततक्षण ब्रोड्यां प्राण जी ॥ साधु सुकोशल शिव सुख पाम्या, एह क्षमा गुण जाण जी ॥ ० ॥ १० ॥ कुण चंमाल कहीजें बिटुमें, निरति नही कड़े देव जी ॥ ऋषि चंगाल कही जें वढतो, टाले वेढनी टेव जी ॥ श्र० ॥ ११ ॥ सातमी नरक गयो ते ब्रह्मदत्त, काढी ब्राह्मण यख जी ॥ क्रोध . तणां फल कहुआ जाली, राग द्वेष यो नाख जी ॥ ० ॥ १२ ॥ खंधक ऋषिनी खाल ऊतारी, सह्यो परिसह जेण जी ॥ गरजावासना दुःखी छुट्यो, सवल क्षमा गुण ते जी ॥ ० ॥ १३ ॥ क्रोध करी खंधक आचा रिज, दुर्दमकुमार जी ॥ दंगक़ नृपनो देश प्रजाल्यो, जमशे नवह मजार जी ॥ ० ॥ १४ ॥ चंद्ररौद्र आचारिज चलतां, मस्तक दीध प्रहा र जी ॥ क्षमा करंतां केवल पाम्यो, नव दीक्षित अणगार जी ॥० ॥ १५ ॥ पांच वार कृषिनें संताप्यो, आणी मनमां द्वेष जी ॥ पंच जव सीम द ह्यो नंद नादिक, क्रोध तणां फल देख जी ॥ ० ॥ १६ ॥ सागरचंदनुं शीस प्रजाली, निशि ननसेन नरिंद जी ॥ समता जाव धरी सुरलोके, पहुतो परमानंद जी ॥ ० ॥ १७ ॥ चंदना गुरुणी यें घणुं निळंबी, धि धिग् तु आचार जी ॥ मृगावती केवल सिरि पामी, एह क्षमा अधिकार जी ॥ ० ॥ १८ ॥ सांब प्रद्युम्न कुमारें संताप्यो, कृष्ण द्वैपायन साह जी ॥ क्रोध करी तपनुं फल हास्यो, की धो द्वारिकादाह जी ॥ श्र० ॥ १९ ॥ न रतने मारण मूठी उपाडी, वाढबल बलवंत जी ॥ उपशम रश मनमांदे आणी, संजम ले मतिमंत जी ॥ ० ॥ २० ॥ काजसगमां चढियो ति क्रोधें, प्रसनचंद ऋषिराय जी ॥ सातमी नरक तणां दल मेल्यां, करुषां तेल कषाय जी ॥ ० ॥ २१ ॥ श्राहारमां क्रोधें कृषि थुंक्यो, थायो अमृत नाव जी ॥ कूरगमूयें केवल पाम्युं, कमातणे परजाव जी ॥ श्र० ॥ ५२ ॥ पार्श्वनाथने उपसर्ग कीधा, कमल जवांतर धीव जी ॥ नरक ति यंच तां दुःख लाधां, क्रोध तणां फल दीठ जी ॥ श्र० ॥२३॥ क्षमावंत
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