________________
(rua)
सद्यायमाला.
ने बिंदुयें, जीव कह्या जिनराय ॥ मे० || वडबीज सम काया करे, जब द्वीप न माय ॥ ० ॥ कं ॥ १२ ॥ अग्नि एकने खोडले, जीव कथा जिन राय ॥ ० ॥ संरशवसम काया करे, तो जंबूद्वीप न माय ॥ मे० ॥ कं ॥ १३ ॥ थूकें संमूर्तिम ऊपजे, नर पंचेंद्रिय जाण ॥ मे० ॥ तेड़ सं ख्याता का, श्री जगदीशनी वाण | मे० ॥ कं० ॥ १४ ॥ जलमा जीव 'कह्या वली, संख्य असंख्य अनंत ॥ मे ॥ नील फूल तिहां ऊपजे, श्रग्नि प्रजाले जंत ॥ मेणाकं॥ १५ ॥ तमाकू पीतां थकां षट काय जीव हणाय ॥ मे० ॥ ज्योति घटे नयणा तणी, श्वासें पिंड जराय ॥ पाठांतरें ॥ उत्तम कोई पीये नही, पंचोमां पत जाय ॥ मे० ॥ कं० ॥ १६ ॥ तमाकूनी संगतें, वे सात व्यसन || मे० ॥ दोय घडी निवृत्त करो, सेवो श्री जगवंत मे० ॥ कं ॥ १७ ॥ दया धर्म जाणी करी, सेवी चतुर सुजाण ॥ मे० ॥ आनंद मुनि एम उच्चरे, ते लहे कोडि कल्याण || मे० ॥ कं ॥ १८ ॥ इति श्री तमाकूपरिहार सवाय संपूर्ण ।
॥ अथ र कि मुनिनी सचाय ॥
र कि मुनिवर चाल्या गोचरी, तडके दाजे शीशो जी ॥ पाय वाणे रे वेलू परजले, तनु सुकुमाल मुनीशो जी ॥ श्ररपि ॥ १ ॥ मुख करमाएं रे मालती फूल ज्युं, ऊजो गोखनी देगे जी ॥ खरेरे बपोरें रे दी ठो एकलो, मोही माननी देगे जी || अरणि ॥ २ ॥ वयण रंगीली रे न यणें वेधियो, ऋषि थंन्यो तेणें गणो जी ॥ दासीने कंडे जारे उतावली, ए. कृषि तेडी आणो जी || अर०ि ॥ ३ ॥ पावन कीजें रे कृषि घर यां गणुं, वहोरो मोदक सारो जी ॥ नवयौवनवय काया को दड़ो, सफल क .से तारों जी ॥ अरणि ॥ ४ ॥ चंद्रावदनी रे चारित्र चूकव्युं, सुख विलसे दिन रातो जी ॥ एकदिन रमतां रे गोखें सोग े, तब दीवी निज मातो जी || || || रकिरणिक करती मा फिरे, गलिये गलि ये मजारो जी ॥ कंडो केणें दीगे रे महारो र शिको, पुढे लोक हजारों जी ॥ धरणि ॥६॥ हुं कायरतुं रे मारी मावडी, चारित्र खांमानी धारों जी ॥ धिधि विषया रे माहरा जीवने, में कीधो व्यविचारो जी ॥ श्र रणि० ॥ ७ ॥ उतस्यो तिहांथी रे जननी पाय पड्यो, मनशुं लाज्यो ति वारो जी ॥ वछ तुज न घंटे रे चारित्र चूकवुं, जेहथी शिवसुख सारो