________________
(१०६)
सच्चायमाला..
नो; उंचपणे गिरि कींपे जी ॥ शशधर पण तस ऊपरें, रजत कुंजपरें दीपे जी ॥ नर० ॥ ३ ॥ पालो सरशव ते मां, अतिगाढो जेलीजेंजी ॥ गलि त पलित तनु जाजरी, मोसी तिहां जोडी जें जी ॥ नर० ॥ ४ ॥ ते सरशव वेंची करी, जरी फिरिन शके पालो जी ॥ निजबल जरती जाणती, जिम जिनमत मतवालो जी ॥ नर० ॥ ५ ॥ यद्यपि ते जरी शके, देवत अनुसार जी ॥ विष्णु पुण्यें पामे नहिं, फरी नरजव अवतार जी ॥ नर० ॥ ६ ॥ कर्म शुभाशुभ वर्गणा, धान्य जाति ते जाणो जी ॥ नास्ति कजाव जरा मली, अविरति जरती जाणो जी ॥ नर० ॥७॥ सरशव सद् गुरु वयणलां, कर्मराशिमां जलियां जी ॥ ते जूदां करी मवि शके, नास्ति कजावें मलियां जी ॥ अथवा ॥ विषय कषायें मलियां जी ॥ व्यविरति जरती मलियां जी ॥ नर० ॥ ॥ इम व्यविरति. बली हारीयो, नरजवनो अवतार जी ॥ त्री जो उपनय नय कहे, श्रागमने अनुसार जी ॥ नराणा इति नरजव दश दृष्टांताधिकारे धान्यराशिनामा तृतीयदृष्टांतः समाप्तः॥३॥ ॥ अथ जूवटनामा चतुर्थ दृष्टांत प्रारंभः ॥
॥ दोहा ॥ सुगुरु पदेन सुधर्मनुं, लहियें सकल सरूप ॥ ते माटे उत्तम कह्यो, नरजव सुकृत सरूप ॥ १ ॥ नरगति विणुं नहिं मुगति गति, तिम नहिं केवलज्ञान || ति कर पदवी नहिं, नरजव विष्णु नहिं दान॥ २॥ ते जणी न रजव तणो, कहुं चोथो दृष्टांत जूट केरो सांजलो, आदर आणी संत ॥३॥ ॥ ढाल पहेली ॥
॥ राग गोडी धमाल ॥ जीवन जीवन हो सनतकुमार ॥ ए देशी ॥ ॥ धीरविमल पंक्तिपद प्रणमी, जाणी जिनवर वाणी ॥ उपनय चोथो नरजव केरो, कहूं सुणजो गुण खाणी ॥ १ ॥ सोजागी सज्ञान सांजलो जी ॥ रतनाकरसम रतनपुरीनो, नृपति शतायुध नाम ॥ कलिशायुध परें जाल पराक्रम, राणी रंजा नाम ॥ सो० ॥ २ ॥ लकण सदन मदन त सांगज, अंगज सम जस रूप ॥ मतिसागर यागर सवि गुणनो, मंत्री सर गुणयूप ॥ सो० ॥ ३ ॥ नृप आस्थान सजायें बेसी, सुतने करे युव राज ॥ पीवर कुचयुगकुंना रंजा, विलसे जिम सुरराज ॥ सो० ॥ ४ ॥ ला
लोन घरो वाधे, ए कलियुगनी रीति ॥ सुत चिंते भूपति मारीने, हुं करूं राजनी नीति ॥ सो० ॥ ५ ॥ एह मंत्र मंत्री कहे नृपने, एकांते
v