Book Title: Sazzayamala
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 404
________________ श्री पृथ्वीचंद ने गुणसागरनी सद्याय. ( ३८१ ) रोग गणेश ॥ मे० ॥ च० ॥ ४ ॥ हूं निजतातने आग्रहें, संकट पडियो जेम || मे० ॥ पण प्रतिबोधूं ए प्रिया, माता पिता पण तेम ॥ मे० ॥ च० ॥ ५ ॥ जो सवि संयम संग्रहे, तो थाये उपकार ॥ मे० ॥ एम शुभ ध्यानें गुणनिलो || पहोतो जवन मजार ॥ मे० ॥ च० ॥ ६ ॥ नारी आउने एम कहे, सांगलो गुणनी खाए ॥ मे० ॥ जोगवतां सुख जोग बे, विपाक कडुवा जाण ॥ मे० ॥ च० ॥ ७ ॥ किंपाकफल अति मधुर बे, खाधे ढंके प्राण || मे० ॥ तिम विषयसुख जाणजो, एवी जिननी वाण ॥ मे० ॥ च ॥ ८ ॥ अग्निनी जो तृप्ति इंधनें, नदीयें जलधि पूराय ॥ मे || || तो विषयसुख जोगथी, जीव ए तृप्तो थाय ॥ मे० ॥ च० ॥ ए ॥ जव जव जमतां जीवडे, जेह रोग्यां धान्य ॥ मे० ॥ ते सवि एकठां जो करे, तो सवि गिरिवरमान ॥ मे० ॥ च० ॥ १० ॥ विषयसुख सुरलोक में, जोगवियां इस जी ॥ मे० ॥ तो पण तृप्तज नवि थयो, काल संख्य अतीव ॥ मे ॥ च० ॥ ११ ॥ चतुरा समजो सुंदरी, मूंजो मत विषयने काज || मे० ॥ संसार अटवी ऊतरी, लहियें शिवपुरराज ॥ मे० ॥ च० ॥ १२ ॥ कुमरनी वाणी सांजली, वृजी चतुर सुजाण ॥ मे० ॥ लघुकर्मा कहे साहेवा, उपाय कहो गुणखाए ॥ मे० ॥ च० ॥ १३ ॥ कुमर कदे संयम ग्रहो अद्भुत एह उपाय || मे० ॥ नारी कहे श्रम विसर्जो, संयमें वार न थाय ॥ मे० ॥ ॥ च० ॥ १४ ॥ कुमर कहे पडखो तुमें, इ मणां नहिं गुरुजोग ॥ मे० ॥ सगुरु जोगें साधशुं, संयम बांकी जोग ॥ मे० ॥ च० ॥ १५ ॥ मात पिता मन चिंतवे, नारीनें वश नवि थाय ॥ ॥ उलटी नारी वश करी, कुमरनुं गायुं गाय ॥ मेणाचण|१६|| जो दवे राजा कीजियें, तो जलशे राजनें काज ॥ मे० ॥ नरपति एम मन चिंतवी, यापे कुमरने राज्य || मे० ॥ च० ॥ १७ ॥ पिता उपरोधें आदरे, चिंते मो हना घाट | मे || पाले राज्य वैरागियो, जोतो गुरुनी वाट ॥ मे० ॥ च० ॥ १८ ॥ राज्यसनायें अन्यदा, पृथ्वीचंद्र सोहंत ॥ मे० ॥ इण व सर व्यवहारियो, सुधन नाम यावंत || मेण ॥ च० ॥ १५ ॥ राजा पूढे सेहनें, कोण कोण जोया देश || मे० ॥ आश्चर्य दीतुं जे तुमें, जांखो तेह विशेष || मे० ॥ च० ॥२०॥ शेठ कहे सुएय साहिबा, एक विनोदनी वात ॥ ०॥ सांजलतां सुख नपजें, जांखं ते अवदात || मे० || || २१||

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