Book Title: Sazzayamala
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 406
________________ श्रीएथ्वीचं अने गुणसागरनी सद्याय, (३ए) - - PM लो ॥ अ॥ध ॥ १२ ॥ संयम लश् सुगुरुकने, श्रुत नणशुं सुखका रीरे लो ॥ ॥ श्रु०॥ समतारसमां जीलशु, काम कषायने वारी रे लो॥ अ॥ का ॥ १३ ॥ गुरुविनय नित्य सेवè, तप तपशुं मनो: हारी रे लो ||अतः ॥ दोष बहेंतालीश टालगुं, माया लोन निवा' रीरे लोअ० || माण्॥ १४ ॥ जीवितमरणे समपणुं, सम तृण मणि गणशुरे लो ॥ अ॥ स॥ संयम योगें थिर थर, मोहरिपुर्ने हणशु रेलो ॥ अ० ॥ मो॥ १५॥ गुणसागर गुणश्रेणीयें, धया केवल नाणी रे लो । अ० ॥ थ ॥ नारी पण मन चिंतवें, वरीये अमें गुण खाणी रे लो ॥अ॥ व०॥ १६ ॥ अमो पण संयम साधशु, नाथ नगीना साथे रे लो।अ। ना० ॥ एम थ आने केवली, ते सवि पियु डा हाथे रे लो।अणा ते॥१७॥ अंबर गाजे इंसुनि, जय जय रख कर ता रे लो । अ० ॥ जण ॥ साधुवेश ते सुरवरा, सेवाने अनुसरता रे लो। अ० ॥ से ।। १७ ॥ गुणसागर मुनिराजनां, मात पिता ते देखी रे लो | ॥ अप । मा ॥ शुनसंवेगें केवली, घाती चार उवेखी रे लो ॥१॥ घा॥१ए। नरपति आवे वांदवा, मन आश्चर्य आणी रे लो॥ अ॥ म॥ शंख कलावती नवथकी, निजचरित्र वखाणी रे लो ॥ अ० ॥ नि॥२॥ नव एकवीश ते सांगली, बृज्या केई प्राणी रे लो ॥ अप बूण ।। सुधन कहे सुणो साहेवा, अत्र आव्यो नमारे लो ॥ अ॥ अ॥१॥ पण ते कौतुक देखवा, मनडो मुफ हरखायो रे लो॥ अण ॥मण॥ केवलज्ञानी मुफ कहे, शुं कौतुक उल्लासे रे लो ॥ अ०॥ शुंग॥ २२॥ एहथी अधिकू देखशो, अयोध्या नामा ग्रामे रे लोणाअंगाते निसुणी मुनिपद नमी, आव्यो श्ण गमें रे लो॥अंग॥ ॥ २३॥ कौतुक तुम प्रसादथी, जोशुं सुख कामी रे लो॥ अाजो॥ एमक हीने सुधन तिहां, उनो शिर नामोरे लो ।। १०॥ ॥१॥ ॥दोहा॥ ॥ पृथ्वीचं ते सांजली, वाध्यो मन वैराग ॥ धन धन ते गुणसागरु, पाम्यो नवजल ताग ॥१॥ हुँ निज तातने दाक्षिणें, पडियो राज्यमकार पण हवे नीसरशुं कदा, थारुं कब अपगार ॥२॥ - -

Loading...

Page Navigation
1 ... 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425