Book Title: Sazzayamala
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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श्री स्यावादनी सद्याय.
(४०१ )
एसा दीसे अक्षरा ॥ ३ ॥ ढाल ॥ तप करतो रे, प्रसनचंद्र ऋषिराज रे ॥ बेष देखी रे, साध्यां उत्तमकाज रे ॥ सोनी घर रे, मेतारज वहोरण गयो ॥ ऋषि देखीरे, सोनार मन आनंद यो ॥ ० ॥ सोनार मंन आनंद इला, सार श्रादार बहोराव एं ॥ तत्र जव न पासें मन विमासे, साधुने परिताप ए ॥ परलोक पहोतो साधु देखी, ताम वेष अंगी करे ॥ ऋपि घातकारी अनाचारी, देषथी जीवित धरे ॥ ४॥ ढाल || वेष वंदो रे, निंदो मां मूरखपणे ॥ द्वेष राखे रे, धर्मय तिनो जिन जो ॥ गृही हूं तो रे, साधु समान क्रिया करे ॥ व्यवहारें रे, साधुपएं को नवि कहे ॥ ० ॥ नवि कहे साधुपणं गृहीने, प्रवचननी साखे करी ॥ राजर्षि सेलंग थयो उत्तन्नो, शिष्य गया सवि परहरी ॥ साधुपंघग करे वेयावच, चोमासी खामण करे || शिष्यवचने सेलंग बलियो, शत्रुजे एस उच्चरे ॥ ५ ॥ ढाल || प्रतिमामांदे रे, तीर्थंकरना गुण नथी ॥ जिनप्रतिमा रे, सद्दहिये धर्म सारथी ॥ तेम मुनिना रे पूरा गुण नवि पामियें ॥ प्रतिमापरे रे, वे प देखी शिर नामियें || त्रुप । प्रतिमा पेरे वेष देखी, हिये हरखी वांदवा || श्रावक समकित स्थिरीकारण, गुण साधु तिहां जाववा ॥ साधुसेव क रतो राग धरतो, कर्मनी करे निर्जरा ॥ श्री जद्रबाहु गुरु पयंपे, घ्यावश्य कमांदे रा || ६ || ढाल || गुरु पाखें रे दीक्षा दीधी नवि हुवे ॥ गुरु सेवा रे, करतां सूत्र पूरो लहे ॥ मुनि आगल रे, वीर प्रकासे मन रुलि ॥ सुपि गौतम रे, संबंध सुच्चा केवली ॥ ० ॥ संबंध सुच्चा केवलीनो, वीर जांखे एली परें | अणसांजली जे केवल पाम्यो, तेणें देशन नवि || करे || शिष्यने ते दी न दिये, कमल न रुचे सुरवरा ॥ व्यवहारे तेहनें कां न दुबे, जगवती मांडे अकरा ॥ ७ ॥ ढाल ॥ मुक्ताफल रे, गुणें करी शोभा लदे || संयमस्थानक रे, संख्यातीता जिन कहे ॥ ज्ञानें पूरो रे,
चारे पुरो नहिं ॥ एवा मुनिने रे, पंक्ति को निंदे नहिं ॥ ० ॥ निंदे नहिं कपिवेष देखी, मुनिविना शासन नथी | एकवीश सहस्र वर्ष सी मा, चाल्यो धर्म बकूशी ॥ सिद्धांतना ए जाव दो हिला, केवली विन वि लड़े || श्री हंसवन सूरिंद बोले, वीतराग एपिपरें कड़े ॥ ८ ॥ इति ॥ ॥ अथ श्री श्री सारजीकृत स्याद्वादनी साय प्रारंभः ॥ || राधो अनाथ होनिश ॥ ए देशी ॥ स्याद्वादमत श्री जिनवर
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