Book Title: Sazzayamala
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 425
________________ (47) सद्यायमाला. / - - गुण गावता, लहिये नत्तम गमः // ध० // 16 // इति // ॥अथ श्रीज्ञान विमलजीकृत सातव्यसननी सद्याय प्रारंनः / ॥देशी कडखानी // वार तुंवार तुं व्यसनसप्तकमिदं, जीवतुं जोय म नमां विचारी। द्यूत मांसं सुरा वारविनता वली, चोरी मृगया परकीयनारी // वार // 1 // रूपवंती बहुगुणयुता कुलवती, सुतवती निजपति प्रेमें सीधी // एहवा द्यूतना व्यसनथी निजवशा, परवशा तोय सानलें कीधी / / वा॥२॥ मांसना व्यसनथी वनमांहि हरिणली; बाणे वेधी पराक्रम वखाणे // श्रेणिको नरपति श्रमणपति नक्तियुत, नरकें गयो ते सह लो क जाणे // वा // 3 // द्वारका रिका स्वर्ग नगरी तणी, वासिता याद वापति मुरारि // विस्तृता बार जोयण धनें पूरिता, चूरिता तेह द्वैपाय नारि // ए सुरापाननो जुर्व विकार // वा // 4 // नयर वसंत वसंतबंधव समो, वसति धम्मिल जस अविण कोडी // सकल निजगेह सुख मेडी वेश्यातणी, संगति पामियो फुःख कोडी / वा // 5 // चोरिका व्यसन थी उःख जुर्गति तणा, नाजनं ले जना नवनमांहि // चोर मंक हरि चित्रक प्रमुखने, राजदंमादि फुःख नरक प्राहिं // वा०॥६॥ पुःखनुं घर थयो जेह मृगयाथकी, नाघवो वनमांहि मेलि सीता // हरणने मा रवा निजवशा हारवा, रावणे तेह निज नयरी नीता // लंपटी रावणे। सीधी सीता // वा // 7 // वासुदेवार्ड सम कि सेनायुतो, जास महिमांहि महिमा विराजे॥प्रबल लंकाधिनाथो परस्त्रीयकी, नारकी तत्र अद्यापि गाजे // वा // 7 // एम अनेकें थया एक व्यसनथकी, पुःख संततितणां तत निकेतं // जेहने सात व्यसन होय मोकलां, ते लहे फुःख कहेवाय केतुं ते सहे दुःख वली मेरु जेतुं // वा // ए // एम जाणीकरी व्यसनने वारियें, धारियें धर्मवर धरिय नेहा // संयमें धीर गुरु चरण आराहिये, नय कहे जिम लहियें सुख समूहा ॥वा० // १०॥इति॥ - ASEASEASE CeseeMeet // इति श्री सद्यायमालाग्रंथः समाप्तः॥ - - -

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