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सद्यायमाला."
नो, ते केम कहिये एकांत जी ॥ मत एकांत कड़े. मिथ्यात्वी, साखी स कल सिद्धांत जी ॥ स्या० ॥ १ ॥ त्रियारूप तिहां न रहे मुनिवर, शोलसे उत्तराध्ययनें विचार जी ॥ साधु साधवी वसे एकठां, श्रीवाएंगे पांच प्र कार जी ॥ स्या० ॥ २ ॥ जीव असंख्य ह्या जल, टबके, पनवणासूत्र जि नराज जी ॥ कल्पसूत्रमांदे नित्य नदीने, लंघे मुनिवर वहोरण काज जी ॥ स्या० ॥ ३ ॥ श्री गंणांगे चोथे ठाणे, मांस आहारी नरकें जाय जी ॥ मद्य मांस मधु पण आचरण, आचारांगे कह्यो जिनराय जी ॥ स्या० ॥ २४ ॥ पंचमांगे न करे श्रावक, त्रिविध पन्नरद कर्मादान जी ॥ इस नि वाहता पण दीसे, सप्तम अंगें कियां परमाण जी ॥ स्या० ॥ ५ ॥ हिंसा न करे त्रिविधें मुनिवर, पंचमे अंगें जुवो धीर जी ॥ जिनवर तेजोलेश्या उपरि, शीतलेश्या मूकी वीर जी ॥ स्या० ॥ ६ ॥ महावेदना हाथ लगा यां, वनस्पतिने थाये अंग जी || पडतो मुनिवर, तेहज पकडे, एह अर्थ
आचारांग जी ॥ स्या० ॥ ७ ॥ उत्तराध्ययने जांख्यो मुनिवर, समय मा त्र न करे प्रमाद जी ॥ दशवैका लिक श्रीजी पोरिसी, निंदणी कीधी म रजाद जी ॥ स्याए ॥ ८ ॥ अंधणी, पण अंध न कहेवो, दशवैका लिक ए विधिवाद जी ॥ ज्ञातायंगे जतिय जांख्या, नागश्रीना अवरणवाद जी ॥ स्या० ॥ ॥ सूत्रे देव अविरति बोल्या, हवे पांचम वाले मनरंग जी ॥ ब्रह्मचरिज तप यति उत्कृष्टो, देवणी बोल्यो गणांग जी ! स्या॥१०॥ सूत्र नवि घटे प्रकरण विघटे, प्रश्न पूठी जें तेढ्ने एह जी ॥ इषन बाहुबल शिवपुर पहोता, एक दिन जांज्यो संदेह जी ॥ स्याः ॥ ११ ॥ सात ज पाशुं मल्ली दीक्षा, सातम वाणे श्रीगणांग जी ॥ बधे अंगें सात सयाशुं, कोण खोटो को साचो अंग जी ॥ स्या० ॥ १२ ॥ नारी सहस बत्ती सें ज्ञाता, सुगडांग, सोल, हजार जी । किसनतणी अंतेर जांखी, किम मेली जे एह प्रकार जी ॥ स्या० ॥ १३ ॥ कुलघर पनरे जंबुपन्नत्ति, समवायांगे कुलघर सात जी ॥ हरि बारमा जिन आठ अंगें, तेरमे, चोथे अंग क हात जी || स्या० ||१४|| चारित्र विराधी ज्युं पांचमें यंगें, जवनपतिमांदे सुर थाय जी ॥ तो सुखमालिका बठे छांगे, किम पूजे देवलोक कहाय जी ॥ स्या० ॥ १५ ॥ सूत्र टीका निर्युक्ति वखाणो, चूर्णि जाष्य ए मेलो पंच जी ॥ पंच कहे तो ते मत साचो, ति अर्थे म करो खल खंच जी ॥ स्या
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