Book Title: Sazzayamala
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 420
________________ श्री सनत्कुमारनी सद्याय, (४०३ ) ||१६|| जीवा निगमें संघयणी, नांख्या नारकी श्री जगवंत जी ॥ उंगणीश श्री उत्तराध्ययनें, मांसपिंमं बोल्या सिद्धांत जी ॥ स्यां ॥१७॥ विष व्याकर करे, नहिं पण अनरथ जाए जी ॥ नांजे नावें नदी केम तरि यें, दशमे छांगे कह्यो जिननाथ जी ॥ स्या०||१८|| श्री जिनप्रतिमानुं वयाव व, | करे कर्म निर्जरा कार्जे जी ॥ दशमे छांगें साधु नी ए, अर्थ विचार कह्या जिन राजें जी ॥ स्या० ॥ १५ ॥ हेय गेय उपादेयं वखायो, तिम उत्सर्ग ने अप वाद जी || विधिचरितानुवादनयसंस्थित, निश्चयनय व्यवहार मर्जाद जी ॥स्या०||२०|| अनेकांत नयवादी जिनवर, श्रागममांहि वद्या दश बोल जी कहे श्री सार समाज के परिखो, श्री सिद्धांत रतन बहुमोल जी ॥ स्या॥ २२ ॥ ॥ अथ श्री शांतिकुशलंजीकृत सनत्कुमारनी सच्चाय ॥ || सरस्वति सरस वचन रस मागुं, तोरे पाये लागुं ॥ सनतकुमार चकी गुण गाउं, जिम हुं निर्मल थाउं ॥ १ ॥ रंगीला राणा रहो, जीवन रहो रहो, मेरे सनतकुमार, विनंत्रे सवि परिवार ॥ ए क ॥ रूप नोपमवखाएयुं, सुर जाणे ए माया ॥ ब्राह्मण रूप करी दोय आया, फरि फरि निरखत काया ॥ रं० ॥ जी० ॥ से० ॥ २ ॥ शुं निर खो तुमें लाल रंगीले, खेल नरी मोरी काया | नाइ धोइ जय बत्र धराव्युं, तत्र फरि ब्राह्मण आया || रं० || जी० || मे० ॥ ३ ॥ देखी जोतां रूप पलटाएं, सुए दो चक्री राया ॥ शोल रोग तेरे देहमें उपना, गर्व म कर कूडि काया ॥ २० ॥ जी० ॥ मे० ॥ ४ ॥ कलमलियो घणूं चक्री मनमां, अमर तणी सुणिवाणी ॥ तुरत तंबोल नाखीने जोवे, रंग जरी काया पल टणी ||रंणाजीनामे ||२|| गढ मढ मंदिर पोल मालियां, बंदी सवि ठकु रा|| नवनिधि चउद रतन सवि टंकी, बंदी सयल सजाइ || २०|| जी० ॥ मे ||६|| धनपुर नयर तेरी महेली, महेली ममता माया ॥ संयम लेइ फरे एकीला, केड न मूके राणा राया ॥ रं० ॥ जीणा मे० ॥ ७ ॥ तुम पाखें मोरुं तन मन बीजे, दिन केही परें लीजें | एक लरक ने सहस वाणुं, नयन जरी जरी बीजें ॥ रंणाजीणामेणाना पाय घूघरी घम घम वाजे, उस उसक रती आवे ॥ दश श्रांगुली मुर्खे देइने, विनति घणी कराये ॥ रंणाजीणामे ॥ पुरोहित महेता परजा जूरे, अंतेजर संवि रोवे । एक वार तुमें सामुं जीवो, सननकुमार नवि जोवे || || जी० ॥ मे० ॥ १० ॥ बत्र घरे शिर चा

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