Book Title: Sazzayamala
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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( ३५० )
..सद्यायमाला.
॥ ढाल त्रीजी ॥
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॥ रसियानी देशी ॥ धन धन जे मुनिवर घ्याने रमे, करता खातम शु ॐ ॥ मुनीश्वर ॥ राजा चिंते सद्गुरु सेवना, करशुं निर्मल बुद्धिः ॥ मु० ॥ धनः ||१|| कबहुं शम दम सुमति सेवशुं, धरशुं खातमध्यान ॥ मु०॥ इम चिंतवतां पूरव गुण चढे, श्रेणीयें शुक्लध्यान ॥ मु० ॥ ६० ॥ ॥ ध्यानब लें सविवरण दय करी, पाम्या केवलज्ञान ॥ मु० ॥ हर्ष धरि सोहम पति श्रावीया, वेश वंदे बहुमान ॥ मु० ॥ घ० ॥ ३ ॥ सांजली मात पिता मन संमे, आव्यां पुत्रनी पास ॥ मु० ॥ ए शुं ए शुं एपि परे बोलतां, हरिसिंह हर्ष उल्लास ॥ ॥ ६० ॥ ४ ॥ दयिता व सुखी मन हर्षथी, उ लट अंग न माय ॥ मु० ॥ संवेग रंग तरंग में कीलती, घ्यावे केवली याय ॥ मु०॥ध॥ सारथ सुधन पण मन चिंतवे, कौतुक अद्भुत दी ॥ मु० ॥ नरपति पूढे मुनिचरणे नमी, स्नेहनुं कारण जिह ॥ मु० ॥ ६० ॥ ६ ॥ केव ली कहे पूरव जव सांजलो, नयरी चंपा जय राय ॥ मु० ॥ सुंदरी प्रियम ती नामें तेने, कुसुमायुध सुत थाय ॥ मु० ॥ ध० ॥ ७ ॥ दंपती संयम पाली शुजमना, विजय विमाने ते जाय ॥ मु० ॥ अनुत्तर सुख विलसी सु र ते चव्यांयां तुमें राणी ने राय ॥ मु० ॥ ध० || ८ || कुसुमायुध पण संयम सुर चवो, यो तुम सुततो नेह ॥ मु० ॥ मात पिता पण पृथ्वीचं नां, सुणी थयां केवली तेह || मु० ॥ ध० ॥ ए ॥ सार्थ पूढे पृथ्वी चंडने, | गुणसागर तुम केम ॥ मु० ॥ मुनि कहे पूरव जव म नंदनो, कुसुमकेतु तस नांम ॥ ० ॥ ० ॥ १० ॥ एंडिज दयिता दोयने ते ज़वें, संयम पा ली ते सार ॥ मु० ॥ समधर्मै सवि अनुत्तर ऊपन्यां या जैव पण थ नार ॥ मु० ॥ ० ॥ ११ ॥ सांजली सुधन श्रावकत्रत लढे, बीजां पण बहु बोध ॥ मु०॥ पृथिवी विचरे पृथ्वी चंद्रजी, सादि अनंत घया सिद्ध ॥ मु० ॥ ० ॥ १२ ॥ नित नित ऊठी हुं तस वंदन करूं, जेणें जग जीत्यो रे मोह ॥ मु० ॥ घढते रंगे हो सम सुख सागरु, करतो श्रेणियारोह || मु० ॥ ध० ॥ १३ ॥ जग उपकारी दो जगहेतु वत्सलू, दीवे परम कल्याण ॥ मु० ॥ विरह म पडशो हो एढ़वा मुनितणो, जाव सहुं निर्वाण ॥ मु० ॥ ध० ॥ १४ ॥ मुनिवर ध्याने हो जन उत्तम पद वरे, रूपकला गुणज्ञान ॥ मु० ॥ कीर्त्तिकमला हो विमला विस्तरे, जीवविजय धरे ध्यान ॥ मु० ॥
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