Book Title: Sazzayamala
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 411
________________ (३५४) सद्यायमाला. - । ॥ माहारा लाल ॥ विरह विद्रोही हो, ऊजी बोडी ॥ माग ॥ प्रीति पुरा || एपी हो, के तें तो तोडी ॥ मा० ॥१॥ सयण सनेही हो, के कयुं पण राखो मा॥ जे सुख सीणा हो, के लेह न दाखो ॥मा | नेम नहेजो हो, के निपट नीरागी॥माकये अवगुणे हो, के मुऊने त्यागी । मा ॥ सासूजाया हो, के मंदिर आवो ॥ मा० ॥ विरह बुझावो हो, के प्रेम बनावो । मा०॥ कां वनवासी हो, के कांश उदासी ॥मा॥ जोबन जासी हो, के फेर न बासी ॥ मा०॥ ३ ॥ जोबन लाहो हो, के वालम लीजें ॥ मा०॥ अंग उमाहो हो, के सफल करीजें ॥ मा॥ हुं तो दासी हो, के आठ जवांरी॥मा० ॥ नवमे जव पण. हो, के कामणगारीमा ॥४॥राजुल दोदा हो, के सहि पुःख वारे । माग --दियर रहनेमी हो, के तेहने तारे ॥ मा ॥ नेम ते पहेला हो, के केवल पामी ॥मा॥ कहे जिनहर्षे हो, के मुक्तिगामी ॥मा ॥५॥ इति ॥ . . ॥अथ श्रीसमयसुंदरजीकृत चेलणासतीनी सद्याय प्रारंजः॥ . ॥वीरे वखाणी राणी चेलणा जी, सतीय शिरोमणी जाण ॥ चेडा नृप नी साते सुता जी, श्रेणिक शियल प्रमाण ॥ वी ॥१॥ वीर वांदीने वलतां थकां जी, चेलणायें दीठो रे निर्मथ ॥ एकलडो वनमा रह्यो जी, साधे ते मुक्तिनो पंथ ।। वी० ॥५॥ शीत ठरे रे सबली पडे जी, चेलणा प्रीतम साथ ॥ चारित्रीयो रे चित्तमा वस्यो जी, सोड बाहिर रह्यो हाथ ॥ वी० ॥३॥ ऊबक जागी रे कहे चेखणा जी, केम करतो दशे तेह ॥ कुसतीने मन शुं वस्युं जी, श्रेणिक पड्यो रे संदेह ॥ वी॥४॥ अंते जर परजालजो जी, श्रेणिक दियो रे आदेश ॥ नगवंते संदेह नांगियो जी, चमकियो चित्त नरेश । वी॥५॥ तातनुं वचन पाट्युं तिहां जी, व्रत लियो अजयकुमार ॥ समयसुंदर कहे चेलणा जी, पामी ते नवतणो पार ॥ वी०॥६॥ इति ॥ ... . .. ॥ अथ श्री मोहन विजयजीकृत रुक्मणिजीनी सद्याय प्रारंनः ।, ॥आले लालनी देशी ॥ कहे सीमंधर खामि, नारदप्रत्ये तिण गम ॥ आले लाल ॥ सांजलजे तुऊनें कहुं ॥१॥ पूरवनव- हरिनार, ब्राह्मणी घर अवतार ॥ आ०॥ रूपकला गुणउरडी ॥ २ ॥ अमरीने अनुहार, अभिनव रतिः अवतार ॥ या०॥ हतां सुंदर सुंदरी ॥३॥ चाले पति : - - -

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