Book Title: Sazzayamala
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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श्री रोहणीजीनी सद्याय,
(३५)
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श्राज्ञाय, गृहिणी ते कहेवाय ॥ आप ॥ पियुमन ग्राहियुं पाणिमां ॥४॥ जोली टोली संग, गत वन धरिय उमंग ॥ श्रा० ॥ कोश् कामिनी नली मली ॥ ५॥ रमे रामा करि होड, लेवे फुदरडी दोड ॥याणा केई घुमरी घालती ॥६॥ गावे मधुरां गीत, सुणतां उपजे प्रीत ॥ ॥ नारी नीकाचित नाचती ॥७॥ न धरे कुणनी बीक, पियु पण नहीं नजीक ॥ आ॥ मयगल ज्युं मद्य पीधलो ॥ ज थाकी सघली नार, ब्राह्मणी पण तिण वार । आ॥ जश् बेठी तरु हेग्ले ॥ए ॥ मोरडीये तिण गह, मूक्यां धरीने उमाहं । आ॥ मां सुंदर तरुहेग्ले ॥ १०॥ मा णसं सण सणं जाणं, मूकण लागी गण ॥ श्रा॥ नय धरी ऊसी मोर डी॥११॥ कौतुक देखण काज, ब्राह्मणी सुणीने श्राफ ॥ आ॥ इंमां दीगंजाश्ने ॥१शा कुकरम खरडे हाथ, इंसां लीधां साथ ॥णाअरुण वरण कां थयां ॥ १३ ॥ मूक्यां तिण हिज गव, मनमें धरी उमाह ॥ ।। आ । फरी पाठी आवी ग्रहे ॥ १४ ॥ मोरडी इंमां पास, आवी थर उदास ॥ आ॥ अरुण निरखी नवि संग्रह्यां ॥ १५ ॥ देखि करेय पो कार, नयणे आंसु धार ॥ आ ।। पुःख धरती वनमोरडी ॥ १६॥ सोल घडी पर्यंत, आकली हुश् अत्यंत । आ॥ पंखीनो शो आशरो॥१७॥ तिण अवसर घनघाट, गाजे करी गडेडाट ।। आ ॥ काजल सरसी के उला ॥ १०॥ वरसे जलधर जोर, जरीयां सरनदी गोर ॥आ॥ ऊमे जबकती वीजली ॥रणा जल वहे गमोठाम, मोरडी इमां ताम |याणा जलथी धोवाइ नज्ज्वल हुवां ॥ २० ॥ उज्ज्वल देखीने तेह, हिरडे हर्ष समेत ॥ आ॥ मां पानां आदस्यां ॥१॥ ब्राह्मण नारी जेह, हरिए हिणी हुश्तेह ॥ आ॥ पूव कर्मवशें करी ॥ ५॥ पामी- पुत्र विनोह, उपन्यो चित्त अंदोह ॥ आ॥ शोल वरस लगें एहने ।। २३ ॥ घडी एक वरस विचार, जाणी विरहनी गर ।। आ॥ वियोगपणे फुःख होये घ ए॒॥ २४ ॥ जली जिननी वाणी, संयम ले के जाणि || आ॥ सम कितधारी केई थया ॥२५॥ निसुणी नारद ताम, जिनने करिय प्रणाम ॥ था॥ मोहनवचनें संथुएयो ।॥ २६॥ इति ॥
॥अथ श्रीलक्ष्मीसूरिकृत रोहिणीजीनी सद्याय प्रारंजः।। . ॥जरतनृप जावशुं ए॥ए देशी ॥ श्री वासुपूज्य जिणंदना ए, मघ
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यक

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