Book Title: Sazzayamala
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 379
________________ (३६२) सद्यायमाला नहिं को साहि रे || मो० ॥ ११ ॥ लीजो व्रतसंबल धरी कोइ, चालतां पंथें सुख होइ, व्यापे भूख तृषा नहि सोइ, पामो सुख तिवार से || मो० ॥ १२ ॥ इम मुनि धर्म कह्यो जगदीश, पाले जे कोइ विश्वा वीश, शिव पा मे त्रिभुवन थाय ईश, नरेंद्र ते केवलश्री पाय रे । मो० ॥ १३ ॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ ॥ दक्षिण दोहिलो हो राज, दक्षिण दोहिलो रे दांजा पाणी लाग यो || ए देशी ॥ मृगातनु जात हो राज, जनविख्यात हो राज, उज्जयनी पासें रे मागे अनुमति व्रत तणी ॥ जे घडी जावे हो राज, ते फरि नावे हो राज, विलंब न कीजें रे, जननी माहाव्रत यादरुं ॥ २ ॥ काच ज्युं काया हो राज, बादल ज्युं बाया हो राज, उदक परपोटा रे, विणसतां वार लागे नहीं || जिम नन दीसे हो राज, धनुष तीरों हो राज, मनो हर दीसे रे, पण क्षण एक विलये सही || २ || जिम तरु सोहे हो राज, पंखी मन मोहे हो राज, पण सव ढंके रे, तस लक्ष्मी विशेयके ॥ इम सहु जाणो हो राज, जगत पीढालो हो राज, स्वारथ न पूगेरे, तो बेस मिल करी ॥ ३ ॥ रयणादिक माया हो राज || अधिक उपाया हो राज, पुत्रादिक द्वारा रे, जावुं इस सब तजि करी ॥ जे जिन राया हो. राज, जगत निपाया हो राज, अनित्य उवेखी रे, त्यागि ऋद्धि शिवपंद गया ॥ ४ ॥ आइ जग व्यापी हो राज, त्रिजग समापी हो राज, अग्नि प्रजागी रे, हो ते विश्वनयंकरु || दिहुं दिशि देखे हो राज, ते जो न पेखे हो राज, माय तव नांखे रे, वत्सं विना दीसे नहीं ॥ ५ ॥ मृगा सुत जांखे हो राज, नहिं कोइ राखे हो राज, जगत विख्याती रे, अग्नि जन्म मरण तणी ॥ माटे तुम पासे हो राज, अधिक उल्लासें हो राज, अनुमति मागुं रे, जननी तम तारशुं ॥ ६ ॥ राणी चित्त तोले हो राज, सुत शुं ए बोले हो राज, छाचरिज पानी रे, जांखे राय राणी सुत णी ॥ सुखो तुम पूत हो राज, दीसो सपूत हो राज, गिरि सम लागे रे, वय एसां नवि बोलियें ॥ ७ ॥ तनु सुकुमार हो राज, जिम पुष्फ 'राज, तुमथी जाया रे, संयमपथ किम पली शके ॥ जोगवो जोग हो राज, तजि मन सोग हो राज, रोग न करियें रे, वत्स उदर म सली करी ॥८॥ चारित्र दोहिलं हो राज, नहिंय ए सहेलुं हो राज, बन माल

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