Book Title: Sazzayamala
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
( ३६४ )
सद्यायमाला.
०
कर जिम जबलें ॥ ० ॥ तरवो डुक्करकार ॥ अ० ॥ अनुपशांत क्रियो दधिं ॥ ० ॥ विषम ते तरवो पार ॥ ० ॥ १० ॥ मानुष जोग ते जोगवो ॥ म० ॥ उत्तम लक्षण पंच ॥ ० ॥ जुक्तजोग थया पी ॥ म० पश्चात् धर्म समंच ॥ ॥ ११ ॥ तव ते कुमर माय तायने ॥ म० ॥ जांखे वचन रसाल ॥ ० ॥ इह लोक पिपासा रहिनने ॥ म० ॥ डुक्कर नहिंय विशाल || ० || १२ || कायरने डुक्कर सही ॥ म० ॥ शू राने नहिं कांय ॥ ॥ नरेंद्र ते सुखनो निधान ॥ म० ॥ संयम सुत कड़े माय ॥ ० ॥
०
१३ ॥
॥ ढाल पांचमी ॥
॥ धवजी संदेशो कहेजो श्यामनें ॥ एदेशी ॥ मृगापुत्र वैरागी दमी श्वर सेहरो, मात पिताने जांखे वचन मनोहार जो ॥ शरीरवेदना मान सी में पूरव सही, कतां न यावे वचनथकी तस पार जो ॥ १ ॥ मृगा वैरागी दमीश्वर सेहरो ॥ ए आंकणी ॥ साचो ए संवेगी यवनीपति खरो, मुनिजनमां ते शोने सबल महंत जो ॥ नाम जपंतां तम जाये ना शी परुं, जन्म मरण कांतार तो लह्यो त जो ॥ मृगा० ॥ २ ॥ जरा मर
पुत्र
कांतार चतुर्गति जय महा, अनुज वियो में वार अनंती माय जो ॥ क र्म व ते जाइ नरक में ऊपज्यो, नाव कहुं ते सुणजो चित्त लगाय जो ॥ मृ० ॥ ३ ॥ अग्नि जमता षणुं लोकमें तेहथी, अनंत गुणुं तिहां नरक मांहि दुःख वार जो || लोह अग्नि गोलानी परें तिहां धग धगे, एहवी वेदन सही अनंती वार जो ॥ मृ० ॥ ४ ॥ सात वेदना ते तिहां तमने दाखवुं मनुलोक में शीत पडे सराल जो ॥ इहांथी अनंत गुणी जे नर कमें वेदना, वार अनंत जोगवी ते सुविशाल जो ॥ मृ ॥ ५ ॥ कुंभी पाक विपाक कर्म वश ऊपन्यो, नीचुं मस्तक ऊर्ध्व कश्या मुऊ पाय जो ॥ वन्दि सरखी रीते वरणे ऊलहले, पाचवियो तस वार अनंती माय जो ॥ मृ० ॥ ६ ॥ कलवनदनी वेल समूह तणे विषे, मेरु मंदर वेलूनी समान जो ॥ माहा अग्नि दावानल सदृश्य तापमें, जलावियो मुफ देह वनंती ताम जो ॥ मृ० ॥ ७ ॥ परमाधामी देव ग्रही मुने बांधियो, कर्वतशुं करी बेद कियो मुऊ देह जो ॥ बीजा पण शस्त्रादि करीने विडं बियो, दुःख जोगवियां वार अनंती ते जो ॥ मृ० ॥ कूट शामली

Page Navigation
1 ... 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425