Book Title: Sazzayamala
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 400
________________ श्रोअष्टप्रवचन मातानी सद्याय. (३०३) - - ग ते पुजल जोग ले रे, पांचे अभिनव कर्मयोगवरणा ने कंपना रे, नवि | ए आतम धर्म। मुभा वीर्य चपल परसंगमी रे, एह न साधक पक्ष। ज्ञान चरण सहकारना रे, वरतावे मनददरे । मु॥५॥ सविकल्पक गुण साधुना रे, ध्यानीने न सुहाय॥ निर्विकल्प अनुजव रसी रे, आत्मा नंदी थायो रे ।। मु०॥६॥ रत्नत्रयनी जेदता रे, एह समल व्यवहार ॥ त्रिगुण वीर्य एकत्वता रे. निर्मल आत्माचारो रें। मु॥॥ शुक्लध्यान श्रुतसंवनी रे, ए पण साधन दाव ।। वस्तु धर्म उबरंगमें रे, गुणगुणी एक सुनावो रे ॥ मु॥ ७॥ परसहाय गुणवर्त्तना रे, वस्तु धर्म न कहाय ॥ साध्यरसी तो किम ग्रहे रे, साधु चत्त सहायो रे ।। मुण् । ए ॥ आत्मरु चि आत्मालयी रे, ध्याता तत्व अनंत ॥ स्याहादज्ञानी मुनि रे, तत्वरम ए उपशांतो रे ॥ मु॥१०॥ नवि अपवादरुचि कदा रे, शिव रसिया अणगार ।। शक्ति यथागस सेवतां रे, निंदे कर्म प्रचारो रे । मुण् ॥ ११॥ शुद्धसिक निज तत्वता रे, पूर्णानंद समाज ।। देवचंड पर साधता रे, न मिये ते मुनिराजो रे । मु॥ १५ ॥ इति ।। ॥अथ सप्तमवचनगुप्ति सञ्चाय प्रारंजः ॥ .. ॥समिति सदा ए दीलमें धरो॥ ए देशी॥अथवा हमीरियानी देशी ॥ वचनगुप्ति सूधी धरो, वचन ते कर्म सहाय ॥ सलूणे । उदयाश्रित जे चेतना, निश्चे तेह अपाय ॥ स॥ वचनगुप्ति सूधी धरो ॥ १॥ ए आंक! णी ॥ वचन अगोचर आतमा, लिक ते वचनातीत ॥ स॥ सत्ता अ स्तिखजावमें, नापक नाव अनीत ॥॥स ॥ व ॥२॥ अनुजव रस आ स्वादता, करता आतर ध्यान । स॥ वचन ते बाधकनाव डे, न वदे मु नि अज्ञान ।। सव०॥३॥ वचनाव पलटायचा, मुनि साधे स्वाध्याय स०॥ तेह सर्वथा गोपनो, परममहारस थाय || स॥ व ॥भा नाषा पुगल वर्गणा, ग्रहणा निसर्ग उपाधि ॥ सा करवा आतम वीर्यने, शाने प्रेरे साधि ॥ स व०॥५॥यावत् वीरज चेतना, आतमगुण संपत्त ।। ।। स तावत सरवे निर्जरो, आश्रव परं आयात ॥ स ॥व०॥६॥. श्म जाणी स्थिरसंयमी, न करें चपलीमंथ ॥ सं॥ आत्मानंद आरा | धतां, आइबी निर्यथ ।। सावण ॥७॥ साध्यं शुद्ध परमातमा, तसु। साधन उत्सर्ग ।। स ॥ वार नेदें तप विविधे, सकल श्रेष्ठ व्युत्सर्ग ॥ - -

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