Book Title: Sazzayamala
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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श्री प्रष्टप्रवचन मातानी सद्याय,
(३१)
॥ अथ चतुर्थ आदान निषेवण समिति सद्याय प्रारंभः ॥ ॥ जोलिडा हंसा रे विषय न राचीयें || ए देशी ॥ समिति चोथी. रे, चजगति वारणी, नांखी श्री जिनराज ॥ राखी परम अहिंसक मुनि वरे, चाखी ज्ञानसमान ॥ १ ॥ सहज संवेगी रे समिति परिणमे ॥ एक णी ॥ साधन तमकाज || याराधन ए संवर जावनो, जवजल तारण ऊहाज ॥ स० ॥ २ ॥ अभिलाषी निज प्रातमतत्त्वना, साखी करि सिद्धां त ॥ नाखी सर्व परिग्रह संगने, ध्यानाकाशी रे संत ॥ स० ॥ ३ ॥ संवर पंच ती ए जावना, निरुपाधिक प्रमाद || सर्व परिग्रह त्याग संग ता, तेनो ए अपवाद || स० ॥ ४ ॥ शाने मुनिवर उपकरण संग्रदे, जे परजाव विरत || देह मोही नवि लोड़ी कदा, रत्नत्रयी संपत्त ॥ स० ॥ ५ ॥ जाव हिंसकता कारणजणी, द्रव्य अहिंसक साधि ॥ रजो हरण मुखवस्त्रादिक धरे, वरवा योग समाधि ॥ स० ॥ ६ ॥ शिव सा घननुं रे मूल ते ज्ञान बे, तेहनो हेतु सद्याय ॥ ते याहारे ते वलि पात्र थी, जयणायें ग्रदेवाय ॥ स० ॥ ७ ॥ बाल तरुण नर नारी जंतुने, नग्न डुगंठा हेतु | तिए चोलपट यही मुनि उपदिले, शुद्धधर्मसंकेत ॥ स० ॥ ८ ॥ मंश मशक शीतादि परिषद सहे, न रहे ध्यान समाधि ॥ क ल्पक च्यादिक निर्मो हिपणे, धारे मुनि निर्वाध ॥ स० ॥ ए ॥ लेप ले पनदीना ज्ञाननो, कारण दंग ग्रंत || दशवैका लिक भगवइ साखथी, तनु स्थिरताने तंत ॥ स० ॥ १० ॥ लघु सजीव चित्त रजादिनो, वारण दुःख संघट्ट || देखी पुंजे रे मुनिवर तेथी, ए पूरव मुनि वह ॥ ० ॥ ॥ ११ ॥ पुल खंध ग्रहण निषेवणा, द्रव्यें जयणा तास ॥ जावे आत्म परिणति नव नवी, ग्रहतां समिति प्रकाश ॥ स० ॥ १२ ॥ बाधकनाव
द्वेषपणे तजे, साधक ले गतराग ॥ पूरव गुणरक्षक पोषकपणे, निपज ते शिवमार्ग ॥ स० ॥ १३ ॥ संयमश्रेणें रे संचरता मुनि, दरे कर्म कलंक ॥ धरता समता रस एकत्वता, तत्त्वरमणि निःशंक || स० ॥ १४ ॥ जग उपगारी रे तारक जव्यना, लायक पूर्णानंद ॥ देवचंद एहवा ते मुनिरा जना, वंदे पय अरविंद ॥ स० ॥ १५ ॥ इति ॥
॥ अथ पंचम पारिावणीया समिति सद्याय प्रारंजः ॥ ॥ चेतन चेतजो रे ॥ ए देशी ॥ पंचमी समिति कहि अति सुंदरु

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