Book Title: Sazzayamala
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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श्रीअष्टप्रवचन मातानी सद्याय.
(३१)
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परम चरण संवरधरु जी, सर्वजाण जिन दिछ॥ शुचिसमता रुचि ऊप जे जी, तिणे मुनिने ए २०॥ मु॥ई राग वधे स्थिरनावथी जी, ज्ञान विना परमाद ॥ वीतरागता ईहता जी, विचरे मुनि साल्हाद ॥ मुणाईना॥ ए शरीर जवमूल डे जी, तसु पोषक आहार ।। जाव योगी नवि हुवे जी, तां अनादि आचार ।। मु॥ई॥ कवलाहारें निहार ने जी, एह अंगव्यवहार ॥धन्य अतनुपरसातमा जो, जिहां निश्चलता सार ॥मुगाईजाणा परपरिणति कृत चपलता जी, केम मूकशे एह ॥एम वि चारी कारणे जी, करे गोचरी तेह ॥मुणाईए॥ मावंत दयाबुआजी, निःस्पृह तनुनीराग ।। नीरविषे गजगति परें जी, विचरे मुनि महानाग मु॥ईगार ॥ परमानंदरस अनुलव्या जी, निजगुणरमता धीर ॥ देव चंड मुनि वंदतां जी, लहीयें नवजल तीर ॥ मु॥३०॥१९॥ इति ॥
॥अथ द्वितीय नापासमिति सद्याय प्रारंजः॥ ॥नावनामालती चूशीयें ॥ए देशी ॥साधुजी समिति वीजी आदरो, वचन निर्दोप परकाश रे ॥गुप्ति उत्सर्गनो समिति ते, मार्ग अपवाद सु विलास रे। सा॥ए आंकणी ॥नावना बीजी महाव्रत तणी, जिन जणी सत्यता मूल रे ॥नाव अहिंसकता वधे, सर्वसंवर अनुकूल रेसा ॥॥ मौनधारी मुनि नवि वहे, वचन जे आश्रव गेहरे ॥ आचरण ज्ञाननें ध्याननो, साधक उपदिसे तेहरे । सा॥३॥ उदित पर्याप्ति जे वचननी, ते करि श्रुत अनुसार रे॥ बोध प्रागनाव सद्यायथी, वलि करे जगत उपकार रे । साणा साधुनिजवीर्यथी परतणो, नवि करे ग्र हण ने सागरे ॥ ते जणी वचन गुप्ति रहे, एह उत्सर्ग मुनिमार्ग रे ॥ सा० ॥ ५॥ योग जे आश्रवपद हतो, ते कस्यो निर्जरारूप रे ॥ लोहश्री कंचन मुनि करे, साधता साध्य चिप रे ॥ सा ॥६॥ श्रात्मदित पर हितकारणे, आदरे पांच सद्याय रे॥ ते जणी अशन वसनादिका, आ श्रय सर्व अववाय रे ॥ सा ॥॥ जिनगुणस्तवन निज तत्वने, जोश्वा करे अविरोध रे ॥ देशना जव्य प्रतिबोधवा, वायणा करण निजबोध रे । सा॥ ॥ नय गम जंग निदेपथी, स्वहित स्याहादयुत वाणि रे॥ शोल दश चार गुणझुं मलि, कहे अनुयोग सुपहाण रे ॥ सा०॥
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