Book Title: Sazzayamala
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 382
________________ श्रीनरेंकृतं मृगापुत्रनी सद्याय. (३६५) - - - -- - - - - - -- - - - - - -- - main- वृक्ष निघट्ट मुफ वांधियो, धनुष वाणे करी जेदी तव मुज काय जो॥खें चाताण करीने घणी वेदन करी, असिधारे करी खंग किया अहो माय जो ॥ मृण् । ए। महोटा यंत्रमांहि ते ग्रहीने नाखियो, नुपरे मुझ पी त्यो घाणीमांहि जो ॥ पापकर्म वश रुदन वलि आक्रंद करूँ, नोगवी वे दना वार अनंती त्यांहि जो॥ मृ ॥ १०॥ नरकमांहि जे करे जे गाढी वे दना, नांखी न शके केवली ते दुःखलेश जो ॥ पर्षदामांहि कोड वरस अहोनिश दिने, अंश मात्र जिहां सुखनो नहिं श्क रेश जो॥ मृ०॥ ११ ॥ क्षेत्र वेदना माहोमांहे पण हुवे, श्वान रूप करी परमाधामी धाय जो ॥ कवढुंक जीरण वस्त्र परे मुफ दीयो, एहवा फुःखनी धरी अनंतीकाय जो ॥ मृ०॥ १५ ॥ अग्नि सरिसी लायमां रथे जोतस्यो, चलावियो ते व लती वेदुमकार जो ॥ जंगली रोक पशुनी परे मुफ पीडियो, असिधारे करी खंम किया निर्धार जो॥ मृ॥१३॥ महिष परे वैश्वानरमें मुझ बा लियो, गिड पंखी ढंकादिक रूप बनाय जो ॥ लोह सरीखी चांचें करी तनु बेदियु, वार अनंती नरेंड कहे सुण माय जो ॥ मृ० ॥ १४ ॥ ॥ढाल ठी॥ ॥तिष्ठ तिष्ठ किहां गयो रे, मेरो लाइ मारे रे।। ए देशी ।। मृगापुत्र निज मायने रे, उपदेशे तिणवार रे ॥ अनंतानंत कुःख अनुलव्यां रे, क हेतां नावे पार ॥ १ ॥जननी विसार रे अनुमति दीजियें उदास रे ।। ए आंकणी ॥ जिन धर्म करणी विना रे, लह्यो नरक निवास रे॥ परमाधा मी वश पड्यो रे, सुख नहिं एक सास ।। ज॥२॥ तृषावश पीड्यो थ को रे, वैतरणी नदी आय रे ॥ कुरधार कलोल जेहना रे, हएयो जेहमें तणाय ॥ जण ॥३१॥ पापे करी पीड्यो तवे रे, या ठंडी देख रे ॥ वन खंग जाणी आवियो तिहां, आशा धरी विशेष ।। ज०॥४॥ असि धार तीक्षण जिस्यां रे, पत्र तरुनां जेह रे ॥ तेणे करी तनु बेदियु, जाणे मां ड्यो वरसवा मेद ॥ जण ॥ ५॥ मुझने पीनज ताडियो रे, परमाधामी देव रे ॥ कातरे करी कापियो मुऊ, खंस खंम विन्नेव ।। ज ॥ ६ ॥ मृग परे तिम जालमा रे, नाखियो मुफ माय रे ॥ मुख बांधी रूंधी करी र, मारियो तस साय ॥ ज०॥ ॥ मीन सम मुझने ग्रही रे जालमांहि ताणी रे ॥ मवर जिम काया करी रे, लियो मुख में आणी ॥ जण ॥॥ - - - - -- ---meani- - -- - m m mmm . - .... -

Loading...

Page Navigation
1 ... 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425