________________
( ३५४ )
सद्यायमाला.
(१९७७) वर्षे पोष ए॥ मास षष्ठी प्रेमरामे, रुषज विजय जग नांख ए ॥१॥ ॥ अथ वैराग्यसाय प्रारंभः ॥
॥ एक घरे घोडा हाथिया जी, पायक संख्या न पार ॥ महोटां मंदिर मालियां जी. विश्वतणो आधार रे ॥१॥ जीवडा दीधानां फल होय ॥ ए की ॥ वि दीधे केम पामिये जी, दियडे विमासी जोय रे ॥जी॥ | दी० ॥२॥ जरियाने सहुको जरे जी, वूठा वरसे रे मेह ॥ सुखियानां सह को समां जी, दुःखियाशुं नहिं नेह रे ॥ जी० ॥ दी० ॥ ३ ॥ वे नर साथै जनमिया जी, एवडो अंतर कांय । एक माथे मूली बढ़े जी, एकतणे घेर राज रे || जी० || दी ||४|| एक सुखिया दीसे सदा जी, दुःखिया दीसे एक || सुखदुःख बेहु तरुं जी, पुण्यतणे. प्रमाण रे || जी० || दी० ॥ ५ ॥ सेव सुंदाली सालणां जी, जोजन क्रूर कपूर ॥ कुकस, बाकस ढोकलां जी, ते नहिं पेटह पूर रे || जी० ॥ दी० || ६ || आंगण आगल मलपती जी, मीठा बोली रे नार || एक घरे काली काबली जी, को न चढे घरबार रे || जी० ॥ दी० ॥७॥ एक घरे बेटा सुंदरु जी, राखे घरनां सूत्र ॥ एक नर दी से वांकिया जी, एक कुल खंपण पुत्र रे || जी० ॥ दी० ॥ ८ ॥ एक चढे घोडे हांसले जी, आगल एक उजाय ॥ एक नर पोडे पालखी जी, एक | लांसे पाय रे ॥ जी० ॥ दी० ॥ ए ॥ पाय पटोलां चांपता जी, पढेर काक ऊमाल ॥ एकतये नहिं उढणुं जी, पहेरवा तो नहिं पोत रे || जी० ॥ दी० ॥ १०॥ एक बहुमांहि बोलाविये जी, चोमांहे चोसाल ॥ एक नाम नव जाये जी, जो जायो जगपाल रे || जी० ॥ दी० ॥ ११ ॥ पात्र कुपात्रे
तरो जी, जुड़े करीय विचार | शालीन सुख जोगवे जी, पात्रतणे अनुसार रे || जी || दी || १२ || दत्त विए गर्वी ते घेहलो जो, नव त
ये परलोक ॥ जेम दीठो जल पोषियो जी, घडिमां थाये फोक रे ॥ जी० ॥ दी० ॥ १३ ॥ राग न कीजे रोष न कीजे, वली नवि दीजे दोष || जो करे वाव्या कोदरया जी, तो केम लणिये शाल रे ॥ जी० ॥ दी० ॥ १४ ॥ आण न खंगे जिनतणी जी, ढमके ढोल निशान ॥ मुनि लावण्य समय जणे जी, प्रत्यक्ष पुण्य प्रमाण रे ॥ जी० ॥ दी० ॥ १५ ॥ इति ॥ ॥ अथ पांच पांवनी सद्याय प्रारंभः ॥
॥ हस्ती नागपुर वर जलुं, तिहां राजा पाऊं सार रे । तस गृहिणी कुंती