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सद्यायमाला..
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ए, जेम खमाव्युं तेम ॥ स०॥ चंप्रद्योतनरायने ए, उदायन खमाव्यु || जेम ॥ स ॥५॥ कुनकार शिष्यनी परे ए, तिम न खमावो जेम ॥ स० ।। बार बोले पट्टावली ए, सुणतां वाधे प्रेम ॥ स॥६॥ पडिकमणुं संव सरी ए, करिये स्थिर करी चित्त ॥ स॥ दान संवत्सरी देने ए, लीजे लाहो नित्त ॥ स०॥॥ चनविह संघ संतोषिये ए, नक्ति करी जलि लाति ॥ स० ॥ इणिपरे पर्व पजूषण ए, खरचो लक्ष्मी अनंत ॥स॥
जिनवर पूजा रचाविये ए, जक्ति मुक्ति सुखदाय ॥ सा क्षमा विजय पंमिततणो ए, बुध माणक मन जाय ॥ स ॥ ए॥ इति ॥
॥अथ श्री नरेंजकृत मृगापुत्र सद्याय प्रारच्यते ॥ ॥ नाटक जरतादिक तिहां रे साल ॥ ए देशी ॥ सुग्रीव नयर सुहाम णुं रे लाल, शोजातणो नहिं अंतरे ॥ नविक जन ॥ बलन नामे नरे श्वरु रे लाल, हरि सम कति महंत रे॥ ॥१॥ मृगापुत्र मुनि गुणवं त रे हो लाल, केम पाम्यो उपशांत रे॥ ज०॥ सुग्री०॥ ए आंकणी ।। मृगावती नृपगे हिनी रे लाल, सुंदर सरखी जोड रे ॥ न ॥ पतिजक्ता गुण रागिणी रे लाल, शीलवंती शिर मोड रे ॥ ॥ सु ॥२॥ तास नंदन दिनकर समो रे लाल, मृगापुत्र अजिराम रे ॥०॥ मात पिता दीधुं सही रे लाल, बीजॅ.बलश्री नाम रे । न । सु० ॥३॥ अलंजोग समरथ वडो रे लाल, कलाविचक्षण ताम रे ॥ ॥ कुलबालिका सरखी नली रे लाल, परणावे बहु मास रे॥ज ॥ सु॥४॥ युवराज पद तस आपियुं रेलाल, जनक साथ बहु प्रेम रे॥ ॥ श्वेतजुवन हरि सारि खुं रे लाल, कुमरन आप्युं हम रे ॥ न०॥ सु॥५॥ रयण जडित कुट्टि म तला रे लाल, नाटक विविध बत्तीस रे॥ ज० ॥ दोगुंदक सुरनी परे रे लाल, जोगवे लोग बत्तीसरे॥ नासु ॥६॥ सानंदन आनंदमे रे लाल, जातो जाणे न दीह रे ॥ ॥ गोखे रह्यो पुरवर जुवे रे लाल, जि म कंढर वनसिंह रे॥सणासु ।।। एहवे इंज मुनि गुणनीलो रे लाल, निदा काज महंत रे ॥चत्रीजा.प्रहरना तापमां रे लाल, रवि तणुं कुःख सहंत रे ।। ज॥ सु॥७॥ तप करी काया शोषवे रे लाल, सर स नीरस आहार रे ॥ ज०॥ बाविश परिसद जीपतो रे लाल, पामवा मवतणों पार रे ॥ ज०॥ सु०॥ ए॥ त्रिक चहूटे मुनिवरप्रते रे लाल, ||
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