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चंदनबालानी सद्याय.
(१८७)
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॥ अथ नित्यलाजजीकृत चंदनबालानी सचाय प्रारंभः ॥ ॥ ढाल पहेली ॥ श्रर कि मुनिवर चास्या गोचरी ॥ ए देशी ॥ श्री सरस्वतीना रे पाय प्रणमी करी, थुषशुं चंदनबाला जी ॥ जेणें वीरनो रे मिह पूरियो, साधी मंगल माला जी ॥१॥ दान उलट धरी जवियण दीजियें, जेम लदियें जग मानो जी ॥ स्वर्गतणां सुख सहेजें पामीयें, ना से दुर्गति स्थानो जी ॥ दान० ॥ २ ॥ नयरी कोसंधी रे राज्य करे तिहां, नामें संतानिक जाएं जी ॥ मृगावती राणी रे सहियर तेहनी, नंदी ना में खाएं जी ॥ दान ||३|| शेठ धनावो रे जिए नगरी वसे, धनवंतमां शिरदारो जी ॥ मूलानामें रे गृहिणी जा पियें, रूपें रति अवतारो जी ॥ दान० ॥ ४ ॥ एणें अवसर श्रीवीर जिनेश्वरु, करता जय विहारो जी ॥ पोषवद पडवे रे निग्रह मन धरी, श्राव्या तिए पुर सारो जी ॥ दानव ॥५॥ राजसुता होये मस्तक कौर करी, कीधा त्रण्य उपवासो जी ॥ पगमां वेडी रे रोती दुःख जरी, रहेती परघरवासो जी ॥ दान० ॥ ६ ॥ खरे रे बपोरें वेठी उंबरे, एकपग बाहिर एक मांदे जी ॥ सुपडाने खूणे रे अडद ना वाकला, मुकने या नत्सादे जी ॥ दान ॥ ७ ॥ एह धारी रे मन मांहे प्रभु, फरता आहारने काजे जी ॥ एक दिन श्राव्या रे नंदीने घरे, ईर्ष्या समिति विराजे जी ॥ दान० ॥ ७ ॥ तव सा देखी रे मन हर्षित थ, मोदक लेइ सारो - जी ॥ वहोरावे पण प्रभुजी नवि लीये, फरि गया तेणीवारो जी || दान |||| नंदी, जश्ने रे सहियरने कड़े, वीर जिनेसर आव्या जी ॥ निशाकाजे रे पण खेता. नथी, मनमां जिग्रह लाव्या जी ॥ दान० ॥ १० ॥ तेनां वयण सुणी निज नयरमां, घणा रे उपाय करावे जी ॥ एक नारी तिहां मोदक लेइ करी, एक जणी गीतज गावे जी ॥ दान० ॥ ११ ॥ एक नारी श्रृंगार सोहामणा, एक जणी बालक लेइ जी ॥ एक जणी मूके रे वेणीज मोकली, नाटक एक करेइ जी ॥ दान० ॥ १२ ॥ एपिरें रामा रे रमणी रंग जरी, आणी हर्ष पारो जी ॥ वहोरावे बहु जाव न करी, तोय न लीये आहारो जी ॥ दा न० ॥ १३ ॥ धन्य धन्य प्रभुजी वीर जिमेसरु, तुम गुणनो नहिं पारो जी | डुक्कर परिसद चितमां यादस्यो, एह अनिग्रह सारो जी ॥ दानव ॥ १४ ॥ एणीपरें फिरतां रे पांच मास थया, उपर दिन पचकी सो. जी ॥