________________
श्री जनरख ने जनपालनुं चोटालीयुं. (३२३)
चालीया, देवी यावी तेणी वार रे लाल || हाथमां खम वीदामणुं, मु खथी बोले मार मार रे लाल || नारी० ॥ ५ ॥ हां || कडवां वचन कह्यां घणां, दया नहींय लगार रे लाल ॥ तव शणगार शोले सजी, घूंघट काढ्य ते िवार रे लाल || नारी ॥ ६ ॥ हां || मीठां वयण कह्यां घां, मुने कां मेलो निर्धार रे लाल || अवला साहामुं जोइने, सुख भोगवो संसार रे लाल || नारी || १ || हां० ॥ सुख संपूरण जोग वो, एम केम दीजें ढेहरे लाल || प्रीत चतुराई पाबली, तमें दुःखीपी | देखो देह रे लाल || नारी० ॥ ८ ॥ हां० ॥ अवधिज्ञाने जोइने, जनरखी यो नगीयो जाए रे लाल || जाइ भेद गाली - करी, किविध वोले नार रे लाल || नारी || || हां ॥ जनपालीयो कठोर बे, पहनें दया नहींय लगार रे लाल || जनरखीया तुं माहरे, प्राण आधारज थाय रे लाल || ॥ नारी० ॥ १० ॥ ० ॥ कमल सुकोमल ढो तुमें, मादारुं हुं फाटी जाय रे लाल ॥ तमारुं दरिस देखीनें, ढूंतो पग पूजुं चित्त लाय रे ला ॥ नारी ॥ ११ ॥ ० ॥ नरसमुद्रमां का मूको, मने एकलडी निर्धार रे लाल || प्राण तनुं तुम उपरें, माहारे वीजो को आधार रे लाल || ॥ नारी ॥ १२ ॥ हां० ॥ मुजनें स मेलो एकली, तमें दया करो महारा जरे लाल || तुम विष जीवाशे नहीं, मादारां सफल करोने काज रे ला a || नारी० ॥ १३ ॥ हां ॥ एम गुणग्राम कीधा घणा, एकवार तुं सा हामुं जोय रे लाल || बलाने जीवाडो सही, नजरे निहालो तो सुख होय रे लाल || नारी || १४ || हां० ॥ वचन विपयनां सांजली, जन रखीयानां कमीयां प्राण रे लाल ॥ वचनरागें रीजावीयो, ललचाणो जोग कारण रे लाल || नारी ॥ १५ ॥ इति ॥
॥ दोहा ॥
॥
रुगीयो जाणीने, ढालि दीयो तेपि वार ॥ देवी घ्यावी उताव ली, वचन कड़े निर्धार ॥ १ ॥ क्रोध करी घणुं मारियो, खंमोखंग करी धार || चिहुं दिशे चाली दीयो, हर्षित हुइ तेखि वार ॥ २ ॥ जनर खि यो दुःखीयो हुर्ज, जोयानां फल जाण ॥ चंपानयरी पहोतो नहीं, वचमा ढोड्या प्राण ॥ ३ ॥ वैराग्यें घर बोड्युं नहीं, हुइ शरन नहिं जाल ॥ शि वनगरी पहोतो नहीं, नरकेँ गयो तत्काल ॥ ४ ॥ रयणा देवी कामिनी,