________________
( ३३४ )
सद्यायमाला..
॥ ए ॥ जीरे श्राव्या घेर उतावला, जी रे न कस्यो विलंब लगार ॥ जीरे माता मुऊ अनुमति दियो, जी रे लेशुं संयम जार ॥ मो० ॥ १० ॥ इति ॥ ॥ ढाल बीजी ॥
॥ कहे माता कुमारने रे, सांजसो गजसुकुमार रे ॥ प्रवीणपुत्र || दीक्षा डुक्कर पालवी हो लाल || तुंः बो नानो बाल रे ॥ प्रवी० ॥ अनुमति ढुं पुं नहिं रे लाल ॥ १ ॥ ए आंकणी ॥ सांलो सुत सुख जोगवो रे, मणि माणक जंकार रे ॥ प्र० ॥ सुख याहिंयाँ बे सुणो हाथमां रे लाल, तुमे परहरो कोण प्रकार रे ॥ प्र० ॥ अनु ॥ २ ॥ पंचत्रतः याप्यां नेमजी रे, मोंघा मूल्य जेवां होय रे हो | मोरी मात ॥ नाणां दीयेंते नहिं मले रे लाल, आप्यां वल मुक एह रे हो मोरीरी माता ॥ दियो अनुमति दीक्षा लडुं रे लाल ॥ ३ ॥ सांजलो सुत संयम जणी रे, पंच पाराधि जेह रे ॥ प्र० ॥ या करम यावी नडे रे लाल, तेहने तुं केम जीतीश रे ॥ प्र० ॥ ० ॥ ४ ॥ मन निर्मल नाले करूं रे, ज्ञानना गोला जेह रे हो । मो० ॥ उपसर्ग अग्नि-दारु दीयुं रे लाल, उमाडी या पहरे हो० ॥ मो० ॥ दियोग ॥९॥ चार चोर अति आकरा रे, लोमा लूंटी जाय रे ॥ प्र० ॥ दश दुशमन वली ताहरा रे लाल, आमा आपे घार ॥ प्र० ॥ अनुण् ॥ ६ ॥ खेमखजानो माहेरो रे, लूंढ्यो केणे न लूंटाय रे हो । मो० ॥ शियलसेना सूधी करूं रे लाल, मारा दुशमन पूरे जाय रे हो || मो० ॥ दी || ७ || मोहमहिपति जे मोटको रे, धीरज केम धरीश रे ॥ प्र० ॥ जालम ए जुगने नडे हो लाल, तेहने तुं केम जीतीश रे ॥ प्र० ॥ अनु० ॥ ८ ॥ कोमल मन कबानथी रे, जाव नाथो जरपूर रे || हो | त्रिकरण मन तीरज करुं हो लाल, मोहम हिपति करूं पूर रे हो || मो० ॥ दीयो० ॥ एए ॥ जोजन जलि जलि जातनां रे, सुखडी साते जात रे ॥ प्रवी सरस नीरस आहार व्यवशे रे लाल, ते खाशो केम करि खांत रे ॥ प्र० ॥ अनु ॥ १० ॥ समकित साते सूखडी रे, मनथिर मोतीचूर रे हो || मो० ॥ गगण गांठीया ज्ञानना रे लाल, जाव जलो जरपूर रे हो ॥ मो० ॥ दीयो० ॥ ११ ॥ सोवनथाल सोदा मणो रे, शाल दाल घृत गोल रे ॥ प्र० ॥ सरस जोजन मन मानतां रे लाल, उपर मुख तंबोल रे ॥ प्र० ॥ अनुः ॥ १२ ॥ कंचन थाली काच