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इस्तुकार कमलावतीनं षंढा लियं.
(२१)
कुँवें अवतार रे || जसापत्नी नामें जली, से जूगु पुरोहित थइ नार रे ॥ पुण्य ॥ ८ ॥ वे इक्षुकार राजा थयो, राज पाले सुखकार रे ॥ पुरो हित पद ने दीयो, जग जल तेनो विस्तार रे ॥ पुष्य० ॥ ए ॥ इशु कार ने कमलावती, भृगु ने जसायली नार रे ॥ सुख जोगवे संसारनां, चारे जीव उदार रे । पुण्य० ॥ १० ॥ सोना रूपा आदें करी, धननो न हिं कां पार रे || पंण पुरोहितने पुत्रज नाहिं, दुःख घरे स्त्री जरतार रे ॥ पुण्य || ११ || दिशा शूनी विए बंधवा, घर शूनुं विश पुत्र रे ॥ ले का र बहुविधपणे, उपाय करे अद्भुत रे || पुण्य० ॥ १२ ॥ संबंध दुवे जेह जीवथी से मेल बिया जगमांदे रे ॥ पहेली ढाल कही जली, माल मुनि उत्सादें रे || पुण्य० ॥ १३ ॥ इति
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॥
" ॥ दोहा ॥
॥ सुख जोगवतां खर्गनां तव ते दोनुं देव ॥ व्यवण चिह्न जाणी करी, अवधि जोश ततखेव ॥ १ ॥ श्रमें उपजशुं बिन्दु जणाँ, पुरोहित गृह सुखकार || नैमित्तिकंरूप लेड् श्रविया, तिए नगरीनी बहार ॥ २ ॥ नि नित्त जांखे बहुजनप्रतें, यश वाध्यों पुरमांहि ॥ ते सांजली प्रश्न पूछवा, आव्यां पुरोहितस्त्री त्यांदि ॥ ३ ॥ पुगे दित कहे रे निमित्तिया, जो सुक पुत्र होय ॥ तमें कहो ते हुं करूं, कोट्या नमित्तिक दोय ॥ ४ ॥ पुत्र होशे दोय तुम्ह पण, लेशे संयम जार ॥ नाकारो करवो नहिं, मान्युं वचन तिवार ॥ ५ ॥ कोल देने देवता, गया पोताने ठाम || काल मा सें देवशी च्यवी, उपन्या युगलपणे ताम ॥ ६ ॥ इति ॥ ॥ ढाल बीजी ॥
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॥ दान कड़े जग हुँ बहुं ॥ तथा नगदलनी देशी ॥ मात पिता तत्र दूरखियां, जनम्या पूरे सास हो । जविजन || माहामहोत्सवे नाम स्था पियुं, देवजड जशोन तास दो ॥ वि ॥ १ ॥ अनुक्रमें ते महोटा या, जया शास्त्र विचार हो ॥ ज० ॥ मात पिता मन चिंतवे, हर्षे केम राखशुं कुमार दो ॥ ज० ॥ २ ॥ ब्रह्मपुरी वासी नहीं, वंसिया तिरा हिज गम हो ॥ ज० ॥ साधुवीके नगरी तजी, वली पुत्र तेड़ी कड़े ताम हो ॥ ज० ॥ ३ ॥ मोकला केश ने मुहपची, मेला वस्त्र मेला गात्र हो ॥ ज० ॥ हाथमां कोली राखे वली, मांहें फांसी पाली कात्र हो