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(३१६.)
... संघायमाला.
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राजा तेशु करे स्नेह तो ॥३०॥ धीजी स्त्री खिजमत करे ए, जोजो। एद महंत तो॥ धन न हरी पीयारडं ए, चोर न कोई कहंत तो। १॥चोरोनुं जो जहुँ हुवे ए, तो साधु सूखें मरंत तो ॥ सोना पीतल बापडा ए, विगते ते सहि लत तो ॥ ॥ मीतुं वोले न बापडाए, मुक्तै कोश् न जाय तो || चोखे चित्ते पुण्य करो ए, देवलोकें तेहिज थाय तो ॥२३॥ तेह पिता केम मुहवीयें ए, जेणे कुल तरीयां जाय तो ॥ धन्य धन्य माता वखाणीयें ए, जेणे राख्यो उदर मांहे तो । २४ ॥ नकि नली परे कीजीयें ए, माता ने वली तात तो ॥ प्रत्यक्ष.ए हिज पारखं ए, घरे घेठो निज जान तो ॥१५॥ वहूअर तेज वखाणी. ये ए, जे राखें घरनी लाज तो || राजपुत्र तेज वखाणोयें ए, जे राखे रूडं राज तो ॥ ६ ॥ शिष्य तेहीज वखाणीचे ए; जे राखे गुरुनो पाट तो॥ धन्य धन्य गुरु पखाणीथे ए, जेणे देखाडी वाट तो ॥२॥ एह विनतडी अस तणी ए, अरिहंत तुं अवधार तो॥ अचरिज एकज वात, ए, स्वानी तेह देखा तो ॥ । मानव सघलां ते सारिखां ए, एवंडो अंतर को हुंत तो॥ एक सूबे लूमि-सायरे ए, एक तो सेज सू वंत तो ॥ श्ए। एक पडे पीबारे आंगणे ए, एकने हीमोला खाट तो॥ एक ही नीख मागतो ए, एक तो राज करत तो ॥ ३० ॥ एक घेर घोडा हाथीया ए, एक घेर ढोर न एक तो। एक दीले नूखें मूआ ए, एक.पामें जमण अनेक तो ॥३१ ॥ एक नर दीसे सुखिया घणा ए, घरे सुकुलिणी नार तो। वीजा पुर्नल दीसता ए, घरणी रांग उतार तो ॥ ३२ ॥ एक नर दीसे.वांजीया ए, एक घरे पुत्र रतन्न तो, एक वेग धन वावरे ए, पुण्य करे दिन दिन्न तो ॥३३॥ कर्म विहूणां माणसां ए, अहोनिश हाथ घसंत तो ॥ एवंडो अंतर कांश कीयो ए, सुणजोश्री अरिहंत तो ॥३॥ एटले अरिहंत वोलिया ए,सांजलजो नर नारि तो॥ पुण्य विद्रणा प्राणीया ए, धरती जोडे नार तो ॥ ३५ ॥ जेणें दीधुं तेणें ॥ पामीयु ए, खीला लाड करत तो ॥ मानव जव ने दोहिलो ए, फरि फरि नवि पामंत तो ॥ ३६ ॥ मानवजव पुण्य नवि कियां ए, पड़ी कांश ढोर करंत तो ॥ चेतणहारा चेतजो ए, आयु जाये घटत तो॥ ॥३७॥ मूश्रा केडे वापडा ए, कांहिं न रहेशे खगार तो॥ पुण्य कहुं ते
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