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दशदृष्टांतना उपनयनी सद्याय.
2. ( -११७)
॥ ढाल चोथी ॥
॥ तुज साथे नहिं बोलुं महारा वाहाला, तें मुजने वीसारी जी ॥ ए देशी ॥ कर्म नृप तिने विरति प्रमुखा, बहुली घरणी दीसे जी ॥ जिन्न जिन्न जननीना जाया, परिसद सुत बाबी से जी ॥ दासीसुत वली चार विचारो, विरुया विषम कषाया जी ॥ राग द्वेष दोइ विकट महानट, अंग रक्षक पद पाया जी ॥ १ ॥ नर्जव सुरतरु सरिखो पामी, महियां मूढ म हारो जी ॥ क्रोध मान मायाने लोजह, चार कषाय विचारो जी रौडदौरध्यान खम कर, धरीने तेज रहियां जी ॥ नो कषाय तालादिक देवे, व्ययकरणजम दियां जी ॥ २ ॥ जवमंरुपमां विविधप्रका रें, जंतु जात तस पक्ष जी ॥ कर्मनृपति अनुजावि कोइक, नय साधन | नो दक्ष जी ॥ एकदिन सुबुद्धि सचिवनी तनया, विरतिकनी नृप देखे जी ॥ ते परीने विससे भूपति, जनम सफल मन लेखे जी ॥ ३ ॥ वार
॥
परें नेह नृपतिनो देखी जनकने गेह जी ॥ श्रावी गर्भवती ते तनया, सुत प्रसव्यो गुणगेह जी ॥ संयमनामा सुतनें जनकें, सकल कलाशीखा व्यो जी ॥ अनुक्रमें जिनवर नृपति मोहोटो, स्वयंवर मंकाव्यो जी ॥ ४ ॥ निर्वृतिनाम सुता परणावा, मोहोटो थंज आरोपे जी ॥ शुजसामग्री द्रोणी पासें, विधिमर्याद न लोपे जी ॥ अवलां सवलां चक्र फरे ते, घाति अघा ती कर्मो जी | मोहनीय स्थिति राधा जाणो, वेधे तेहनो मर्मो जी ||५|| ते विद्या साधनने काजें, परिसह अने कषाया जी ॥ आया पण तिहां मान गमाया, कन्या लाज न पाया जी ॥ नरजव समकित संयुत पामी, सर्व विरति अनुसरी जी ॥ राधावेध कहीजें तेहने, जवजल निधि एम तरी ये जी ॥ ६ ॥ एम निर्वीर महीतल देखी, संयमसुत सावधान जी ॥ सचिव पुत्र विद्यानगर, पामी नृपनुं मान जी ॥ ज्ञान कवाण पणब शुभ किरिया, जोडी दरिसण वाण जी॥ श्रतमवीर्य तिहां प्रगटावे, राधा वेध सुजाण जी || || घाति कर्मथिति वेध करीने, निवृत्तिकन्या परणे जी॥ जयजय शब्द थयो जिन शासन, जिनवर भूपति वरणे जी ॥ इणि परें रा धावेध तणी परें, दोहिलो नर अवतारो जी । विषय कषाय वशें म महा रो, अंतरवेरी वारो जी ॥ ८ ॥ नरजव समकित संयुत पामी, सर्वविरति नुसरिये जी || राधावेध कहीजे तेहने, जवजलनिधि एम तरियें जी ॥ चं