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. सद्यायमाला.
| पडतो पामे ए ठाए ॥ चतुः ॥ ५ ॥ दर्शनमोहनी कर्मनो, क्षय उपशम जब थाय ॥ चतु ॥ तेमाटे त्रण जावथी, हुवे चोथुं गुणठाय ॥ चतु० ॥ ६ ॥ चारित्रमोहनी कर्मनो, क्षयोपशम जव थाय ॥ चतु० ॥ देश प्रमत अप्रमत्त लहे, क्षायोपशमिक तत्त्व ॥ चतु ॥ ७ ॥ उपशम चारित्र मोहनो, पूर्वथी वसंत जाव ॥ चतुः ॥ उपशम श्रेणिने आशरी, चारे उपशम जाव ॥ चतु || ८ || चारित्र मोदना कयथकी, अपूर्वथी क्षीण मोहांत ॥ चतु ॥ क्षायिक जावथकी होये, रूपकश्रेणि गुणतंत ॥ चतु ॥ ए ॥ कय हु घाती कर्मनो क्षायिक जाव प्रधान ॥ चतु ॥ त्रयोद शमे गुण स्थानकें, योग सहित जगवान ॥ चतुo॥ १० ॥ योग जनक कर्म क्रय थयुं, तब दुइ लेश्या सुक्क ॥ चतु ॥ क्षयजावे योगी केवली, कम्म कलंक विमुक ॥ चतु ॥ ११ ॥ इति ॥
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॥ ढाल नवमी ॥ हो मतवाले साजना ॥ ए देश ॥
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सो
॥ तेतरिया जवि तेतरिया, जे जाव विचारें जविया रे | सूत्र याग पंचांग माने, सप्तजंगीना दरिया रे ॥ ते० ॥ १ ॥ निश्चय ने व्यवहार बसावे, नय प्रमाण चित्त धारया रे ।। हेय गेय उपादेय वखाणे, कार्य का र याचरिया रे ॥ ० ॥ २ ॥ उत्पत्ति नाश ने धौव्य प्ररूपे, द्रव्य गुणं पज्जव जरिया रे ॥ द्रव्य क्षेत्र काल जावने माने, ते शिवरमणीयें बरिया | ३ || ते० ॥ ३ ॥ जे षट्नाव स्वरूप न जाणे, करे नित्य बहु द्रव्य किरि | या रे || एकांते मिथ्यात्वज कहीयें, ते संसारमां करिया रे ॥ ते० ॥ ४ ॥ कारणविण जे कारज साधे, ते जवमांहे फरशे रे ॥ कारणयोगें जे कारज साधे, ते जन बड़ेला तरशे रे ॥ ते० ॥ ५ ॥ धर्मधुरंधर पुण्यप्राजा विक, कस्तूरचंद सोजागी रे || जिन पूजे जिनचैत्य करावे, सूत्र सिद्धांत ना रागी रे ॥ ते० ॥६॥ शा जोजाने दोशी फुर्लन, बीजा बहु जवि प्राणी: रे ॥ श्री महाजाष्य विशेषावश्यक, सांजले चित्तमां आणी रे ॥ ते० ॥ ७ ॥ तेह तथा आग्रहथी ए शुभ, जाव स्वरूप विचारो रे ॥ अनुयोग द्वार षडशीतिमांथी, आयो अति विस्तारो रे ॥ ते० ॥ ८ ॥ जणतां गु एतां सुणतां संपत्ति, लीला लाठी जंगारो रे ॥ जिनवाणी रंगें सांजल 'तां, नित नित जय जयकारो रे ॥ ते० ॥ ५ ॥ अचलगढ़ें गिरुच्या गष्ठ,