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जीवनपदेशनी सद्याय.
(२४)
जागे, कष्ट पडे म म मागे रे ॥ मा० ॥ २ ॥ दुःख यावे पण धर्म म मूके कुल आचार म चूके || धरती जोईने पग तुं मूके, पापें किमदी म इके रे ॥ मा० ॥ ३ ॥ सगुरुकेरी शीख सुणीजें, श्रागमनो रस पीजें ॥ खाली रीशेंगाल न दीजे, आप वखाण न कीजे रे ॥ मा० ॥४॥ शक्त व्रत पञ्चरका आदरियें, जान जोइ व्यय करियें । पर उपकारें आगल थाये, विधिशुं यात्रे जाये रे ॥ मा० ॥ ५ ॥ समकितमां मत करजे शंका, धर्मे म थाइश वांका ॥ ढंकी सत्य न याये ए रंका, संतोष सोवन टंका रे ॥ मा० || ६ || किमड़ी जतुं वयण म नांखे, जिन भेटे लेइ आखे ॥ शीलरतन रूडी परें राखे, हीणें दीप म दाखे रे ॥ मा० ॥ ७ ॥ समकित धर्म म मूके ढीलो, व्यसनें म थाइश वीलो || धर्म काजें थाये तुं पहेलो, एहिज जसनो टीलो रे ॥ मा० ॥ ८ ॥ ज्ञानदेव गुरु साधारणनुं, द्रव्य रखोपुं क रजे || पानी अन्याय तणुं द्रव्य, संगति डूरें करजे रे || मा० ॥ ए ॥ विनय करे जे गुरुजन केरो, पंचपर्व चित्त धारे ॥ हीन महोदय अनुकं - पायें, दुःखियानें साधारे ॥ मा० ॥ १० ॥ शक्ति पाखें म करीश मोटाइ, शुभकामें न खोटाइ || ढोडीजें चूगल चोहाने, मलवुं न दुष्टथी कांई रे ॥ मा० ॥ ११ ॥ धर्मक्षेत्रे निज धनने वावे, जिम आंगल सुख पावे ॥ पर निंदा निजमुखें मत ल्यावे, आपे ही नावे रे | मा० ॥ १२ ॥ उदेरी मत करजे लडाइ, आदरजे सरलाई || फुलाव्यो चित्त न धरे जडाइ, पा मीश एम वडाइ रे || मा० || १३ || विधिशुं समकी व्रत आदरजे, त्राय का ल जिन पूजे ॥ बुध पूठीने उद्यम करजे, व्यसन अवश्य परिहरजे रे || मा ॥ १४ ॥ ज्ञानविमल गुरु सेवा करियें, तो जवसायर तरीयें ॥ शिवसुंदरी | नें सहेजें वरियें, शुद्धमारग अनुसरियें रे || मा० ॥ १५ ॥ इति ॥ ॥ अथ जीवनपदेशनी सद्याय प्रारंभः ॥
॥ सहुको सुणजो रे, करम समो नहीं कोइ ॥ ए देशी ॥ चेतन चेतज़ो रे, ए काल न मेहले केडो ॥ संबल शीघ्र सायें लेजो, की नाश वसे बे नेडों ॥ चे० ॥ १ ॥ बायामिष करी ए नित्यें, बल गवेषे बानो ।। अचिंत्यो वी पकड़ी जाशे, कांईक चडावी वानो ॥ ये० ॥ २ ॥ तनुरुख ए जीव बटेरो,
रामे रमतो ॥ क्रूर कीनाश ए शमली पेरें, लेई जाशे जमतो ॥ चे० || ३ || बाला बूढा गरनें हुता, यौवन वय लेइ जावे ॥ काचां पाकां ।