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(२ )
सयायमाला पीयु श्रागस मतपती॥ चमके चूडियां सार मणियें चमकती, नकवेसर | वेणी मरीयां जमकंती॥ कर कडिया:जडियां मुडियां दमकंती, थरु नेउर पगमें घूघरियां धमकंती ॥धन॥५॥ जंब बदन दिखावे काम जगावे बाला, प्राणी सरखी ऊनी रूप रसाला ॥ प्रीतमको श्रादरमा गे सुंदरी उमाश, तन मन उनसंती उन्नी श्राशा सा॥ कहें. विजयकुमर ।। जी अहो सुंदरि जलै थाई, पण हमणां तुमशु काम नहिं मुफ कोई॥ दिन तीन लगें तो नहिं मदनकी गही, फिर तुम हम पी सुखें सुखें दिन जाई॥धन ॥६॥ कहे कुमरी कुमरकू कहो कारण ले का हु से दर तन सज कर आश् बुं उमाई । अब अवसर नरियां केम तजो प्रीत मजी, में नियम लीयो ने तुं सुंदरी नहिं समजी ।। तब कुमरी पूले कहो प्रीतमजी हमकुं, अब किसी नांतका नियम लिया हे तुमकुं।मुक बाल पणाथी शियल रुच्यो मनमांही, किया कृष्णपक्षका नियम मुनि जाइ ॥ धन ॥७॥ तब विजया कुमरी ऊनी मुख कुमलाई, मुझ मनकी आशा जरी रही मनमांही ॥ कहे विजयकुमर सुण सुंदरि क्यु कुम ला, तुम जिम जे तिम मुज वेग कहो फुरमाई-॥ तब विजयाकुमरी धीरजता मन लाई, नीचा नेत्रं करी वात करे सुरजाई ॥ मुफ बालपणा थी शील रुच्यो मनमांही, पहिला परणेका परिणाम हता नहिं काही ॥धन ॥७॥ गुरुणी किया में शुक्लपक्षका.सोगन, अब तो महारे। हुआ दोनुं पक्षका आगन ॥ प्रीतमजी तुम तो परणो नारी अनेरी, पण पहेली श्वा शील तणी हुश् मेरी ॥ कहे विजयकुमरजी अहो ववन गु णवंती, अब तुम हम जोडी मली यह दीपंती ॥ हवे रत्न मेड लोण ।। काच ग्रहे सुण प्यारी, शुद्ध शील पाल\ मुक्तिरमणी हे नारी ॥धन॥ ॥ए ॥ बहु देवलोकनां सुख विलस्यां वार अनेरी, पण मनश्छा पूरण जश्नहिं कुण केरी ॥जीव नरक निगोद जम्यो जवसायर मांदी, बहु काल गमायो गरज सरी नहिं कांही। अब उचम कुल अवतार-खीयो |
आश, पुण्ययोगें मुनिवरकी योगवाई पाई। अब मात तात सब बात || मिले स्वारथका, चढते परिणामें शियल पालशुं नित्यका । धन॥ १०॥ अब अल्प संपदा देखी कहो किम खोयें, पण वाटी साटे खेत खोयां || फुःख होश्ये। अब यह बात अपने नहिं करनी कीसीकुं, जो हम दोनुने
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